भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
राम-श्याम आये
‘ये क्या करेंगे कंस के साथ–यह पूछो।’ अनेकों ने हंसकर कह दिया– ‘कंस क्या करना चाहता है, वह तो पता ही है। उसने इनके जन्म से अब तक इनको मारने का ही तो प्रयत्न किया है। कल वह अपने सब असुर एक साथ झोंक दे सकता है इन पर; किन्तु उसके असुर-नायक अब बचे ही कितने हैं? चुन-चुनकर वह व्रज भेजता गया और जो गया उसे ये यमलोक के मार्ग पर लगाते रहे। कल लगता है कि कंस की बारी आ गयी है। ‘वे आ गये!’ मथुरा में यह सम्वाद बड़ी शीघ्रता से फैल गया। लोगों ने दौड़कर–भले फुसफुसाकर दूसरे से कहा; किन्तु समाचार तो पूरे नगर को कंस से पहिले मिल गया था। कंस का भय इतना ही काम कर सका कि लोग आम्रोपवन में दौड़े नहीं पहुँचे। यों लोगों का हृदय व्याकुल था वहाँ जाने को।
सब मानते हैं; किन्तु बालक नहीं माना करते। बालकों का मानस भय या आतंक देर तक पकड़े नहीं रह सकता। बालकों की एक बड़ी भीड़ आम्रोपवन के समीप पहुँच गयी। मध्याह्न भोजन तक उनमें से बहुतों ने विस्मृत कर दिया था। संकोच के कारण वे दूर ही दूर रहे; किन्तु राम-श्याम का समाचार उनके द्वारा मिलता रहा उनके घर के लोगों को। वे आये और उनके मित्रों ने जो गोपों के साथ आये थे, उन्हें घेर लिया। दोनों कुमार सखाओं के साथ स्नान कर आये यमुना जी में। नन्दबाबा और गोपों ने भी साथ ही स्नान किया। बालकों को शीघ्र ही जल से निकलने को बाध्य किया। ऐसे भी फाल्गुन में यमुना-जल में देर तक तो नहीं रहा जा सकता था। सब गोप और गोप-बालक एक साथ भोजन करने बैठ गये थे। वे अपने साथ ही छकड़ों में भोजन-सामग्री ले आये थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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