अक्रूर लौट आये
कंस चाहकर भी इतनी भयंकर कल्पना नहीं कर पाता कि वे अक्रूर के आने का तात्पर्य जानकर उसे मारने मथुरा आ धमकेंगे। वह नहीं समझता कि वे सीधे कोई आक्रमण आज ही कर देंगे। अक्रूर ने जब आकर कहा– ‘मैं सायंकाल पहुँच सका वहाँ दिन भर वन में रह गया।’ कंस उच्च स्वर से हँसा था। अक्रूर ने पहुँचते ही यह तो पहली बात कही थी– ‘वे दोनों भाई आ गये। नगर से बाहर आम्रोद्यान में नन्दरायजी गोपों के साथ रुके हैं। दोनों भाई रथ से वहीं उतर गये।’ ‘आप मार्ग भटक गये होंगे!’ कंस ने अक्रूर को कोई उलाहना नहीं दिया। अक्रूर जी भी उसे अभिवादन करके अपने भवन तत्काल चले गये।
‘यह वृद्ध भी अदभुत है।’ कंस ने अक्रूर को जाते देखकर स्वयं अपने आपसे कहा– ‘ऐसा भोला-मूर्ख कि रथ उन दोनों को लेकर चला और मथुरा गोपों के छकड़ो से भी बहुत पीछे पहुँच सका है। यह सोचता होगा कि मैं सब यदुवंशियों को मार दूँगा और इसका ऐसे ही सम्मान करता रहूँगा।’
कंस को प्रात: गोप आवेंगे ऐसी आशा नहीं थी। जब वे पिछले दिन-रात्रि के प्रथम पहर तक नहीं आये तो वह समझ गया कि गोप अब कल प्रात: ही चलेंगे। वे दोनों भी घर से कुछ खा-पीकर ही निकलेंगे। ‘गोपों को मैंने उपहार लेकर आने को कहा है।’ कंस अपनी पिछले दिन की अकुलाहट पर स्वयं हँसा– ‘वे उपहार में दूध, दही, नवनीत, घी ही तो लावेंगे। अक्रूर के पहुँचने तक दूध उनके यहाँ जमाया जा चुका होगा कल, और दधि-मन्थन तो गोपघरों में प्रात: ही हो जाता है। केवल नवनीत और घी लेकर तो वे यहाँ आने का साहस नहीं करेंगे। आज प्रात: से पहले वे चल ही नहीं सकते थे।’
मध्याह्न से पहले ही कंस को समाचार मिल गया– ‘बहुत धूलि उड़ती दीख रही है। लगता है कि गोपों के छकड़े बड़ी संख्या में आ रहे हैं।’
‘व्रजपति नन्दराय गोपों के साथ आ गये।’ दूसरा समाचार मिला– ‘उन्होंने आम्रोपवन में छकड़े खोले हैं अपने। वे वहाँ राम-कृष्ण के आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। गोप उनके आने पर उनके साथ ही मध्याह्न भोजन करने को उत्सुक हैं।’
‘अक्रूर कहाँ रह गया?’ कंस झल्लाया था। वह राजसभा में बैठा-बैठा अक्रूर के आगमन की प्रतीक्षा कर रहा था। वैसे उसकी आकुलता मिट गयी थी– ‘वे दोनों चल तो पड़े ही हैं। अक्रूर बड़ा पुजारी है। कहीं मध्याह्न स्नान-सन्ध्या करने में लग गया होगा।’
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