भगवान वासुदेव -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
क्रूरता कटती गयी
‘निकल आये।’ समाचार देने वाले ने शीघ्रतापूर्वक कहा था– ‘थोड़ी देर कालिय के फणों पर नाचते-कूदते रहे और जब सर्प मूर्च्छित होने लगा, कूदकर हृद से बाहर आ गये।’ ‘सकुशल है वह?’ माता देवकी ने पूछा था। ‘सब वहाँ सकुशल हैं।’ चर ने सुनाया– ‘कालिय सपरिवार यमुना छोड़कर कहीं चला गया। रात्रि में दावाग्नि लग गयी थी; किन्तु किसी के वस्त्र का कोना तक नहीं जला।’ ‘किसी को उनके पास नहीं जाना चाहिये।’ कंस ने निर्णय किया। उसके प्रमुख शूर एक-एक करके मारे जा रहे हैं। वह कोई उत्तम योजना बनावेगा। लेकिन वे ही किसी के पास पहुँच जाये तो? सब बालकों को लेकर वे ताल वन में जा पहुँचे थे। वहाँ का अधिपति बना बैठा था गधा धेनुक। उसे बड़े भाई ने मार दिया और छोटे ने उसके जाति भाइयों को नष्ट कर दिया। बेचारी ढुण्ढा तो केवल पता लगाने वहाँ गयी थी। दुर्भाग्य उसका कि वह होली के दिन पहुँची। राम-श्याम को देख भी नहीं सकी। गोप-कुमारों ने उसे सूखी लकड़ियों में दबाकर फूँक दिया। प्रलम्ब कह गया कंस से– ‘मैं दोनों में से एक को जीवित आपके पास ले आऊँगा।’ कंस की रोहिणी कुमार में उतनी रुचि नहीं है; किन्तु प्रलम्ब छोटे से भय खाता है। वह बड़े को ले आवे तो सम्भव है छोटा अग्रज के प्रेमवश स्वयं मथुरा आ जाये। वह यहाँ आ जाय तो कुछ-न-कुछ किया ही जा सकता है। प्रलम्ब को उपाय वही ठीक लगा था जो मयपुत्र ने अपनाया था। वह भी गोपकुमार ही बनकर गया। गोपों के लड़के मित्र बनाने में हिचकते नहीं। प्रलम्ब सफल हो गया बड़े भाई को पीठ पर बैठाकर ले भागने में; किन्तु उसे कहाँ पता था कि बड़े का घूँसा भी बड़ा है। प्रलम्ब की खोपड़ी की हड्डियाँ चूर-चूर हो गयी थीं एक ही घूँसे से। कंस ने सुना– ‘व्रज पर प्रलंयकर वर्षा प्रारम्भ हो गयी है।’ बड़ा प्रसन्न हुआ था वह। इस बार वह देवराज इन्द्र को पुरस्कृत कर देगा। अभय दे देगा उन्हें। अमरावती राज्य नहीं चाहिये कंस को। उसके शत्रु का उन्मूलन यदि सुरेन्द्र करे दें…..।’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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