पूतना गयी
गगन में माया से पक्षी होकर जाने में उन तेजस्वी की दृष्टि पड़ने का भय था और उनकी सहज दृष्टि भी पड़ गयी तो माया टिकेगी नहीं। अपने यजमानों के अनिष्ट का कुटिल अभिप्राय लेकर आने वाली के साथ वे क्या व्यवहार करेंगे? पूतना एक बार काँप गयी।
‘उनसे बचकर भी तो वहाँ जाया जा सकता है।’ पूतना ने मार्ग सोच लिया। वह नारी बनकर ही वहाँ जायेगी। बहुत सुन्दर नारी बनकर जायेगी। गोपनारियाँ चकित रह जायें, ऐसी नारी बनकर और उस बूढ़े ऋषि के आश्रम को दूर छोड़कर गोकुल में प्रवेश करेगी। पूतना गोकुल गयी–वह गयी, सो गयी। वहाँ जाकर भला कोई असुर लौटता है कि वह लौटती मथुरा।
‘पूतना बालकों को मारती घूम रही है।’ वसुदेव जी तक यह समाचार पहले ही पहुँच चुका था। वे बहुत चिन्तित थे; किन्तु चिन्ता स्वयं तो कोई उपाय नहीं है; और कुछ किया भी जा सके- इस स्थिति में वे नहीं थे।
‘पूतना आज बहुत मनोरम नारी रूप बनाकर गोकुल की ओर जाती देखी गयी है।’ वसुदेव जी के उस सेवक ने उन्हें समाचार दिया, जिसे उन्होंने चुपचाप पूतना पर दृष्टि रखने का आदेश दे रखा था।
‘गोकुल की ओर गयी है?’ वसुदेव जी व्याकुल हो गये। वे अपने आराध्य के श्रीविग्रह के सामने पहुँचे– ‘नारायण! भक्तवत्सल! करुणावरुणालय! रक्षा करो स्वामी।’
वसुदेव जी को नन्दभवन में अपना लाल जैसे प्रत्यक्ष दीखता हो और पूतना गयी है वहाँ। क्या करें? कैसे करें? वे आराध्य को ही तो पुकार सकते हैं।
यह तो कहीं कई दिन पीछे पता लगा कि पूतना गयी। वह सचमुच मथुरा से ही नहीं, इस लोक से सदा के लिए चली गयी। वह कहाँ फिर धरा पर लौटने वाली है।
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