भगवद्गीता -डॉ. सर्वेपल्लि राधाकृष्णन
3.प्रमुख टीकाकार
जीव और परमात्मा को शाश्वत रूप से एक-दूसरे से पृथक माना जाना चाहिए, और उन दोनों में आंशिक या पूर्ण एकता का किसी प्रकार समर्थन नहीं किया जा सकता। ‘वह तू है’ इस प्रसंग की व्याख्या वह यह अर्थ बताकर करता है कि हमें मेरे और तेरे के भेदभाव को त्याग देना चाहिए और यह समझना चाहिए कि प्रत्येक वस्तु भगवान के नियन्त्रण के अधीन है।[1] माध्व का मत है कि गीता में भक्ति-पद्धति पर बल दिया गया है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मदीयं तदीयम् इति भेदम् अपहाय सर्वम् ईश्वराधीनम् इति स्थितिः। भागवत-तात्पर्य।
- ↑ ईसवी सन 1162
- ↑ जीव
- ↑ जगत
- ↑ ईसवी सन 1479
- ↑ प्रेमलक्षणा श्रद्धा। अमृत-तरंगिणी।
- ↑ “इति नानाप्रसंख्यानं तत्त्वानां कविभिः कृतम्।”
- ↑
देहबुद्धया तु दासोऽहं, जीवबुद्धया त्वदंशकः।
आत्मबुद्धया त्वमेवाहमिति मे निश्चिता मतिः॥
चतुर्थ पाद में पाठभेद हैः ‘इति वेदान्तडिण्डिमः’ – अनुवादक साथ ही देखिए आनन्दगिरि का ‘शंकरदिग्विजय’।
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