भगवद्गीता -डॉ. सर्वेपल्लि राधाकृष्णन
11.भक्तिमार्ग
भक्ति व्यक्तिक परमात्मा के साथ विश्वास और प्रेम का सम्बन्ध है। अव्यक्त की पूजा (अव्यक्तोपासना) साधारण मानव-प्राणियों के लिए कठिन है, हालांकि ऐसे महान् अद्वैतियों के अनेक उदाहरण विद्यमान हैं, जिन्होंने अव्यक्तिक वास्तविकता (निराकार ब्रह्म) को बहुत सजीव भावुक रूप दिया।[1] व्यक्तिक परमात्मा की पूजा दुर्बल और निम्न, अशिक्षित और अज्ञानी[2] सब लोगों के लिए एक सरलतर उपाय के रूप में प्रस्तुत की गई है। प्रेम की बलि उतनी कठिन नहीं है, जितना कि अपनी इच्छाशक्ति को भगवान् के प्रयोजन की ओर या तपस्यामय अनुशासन की ओर या चिन्तन के थका देने वाले प्रयत्न की ओर मोड़ पाना। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भक्तिमार्गों लोग अद्वैतवादियों द्वारा ज्ञान पर बहुत ज़ोर देने की बहुत निन्दा करते हैं। वे इसे निन्दनीय विश्वास-भेद या आत्मा का हनन करने वाली भूल बताते हैं, हालांकि शंकराचार्य ने क्रमशः मुक्ति की तैयारी के रूप में भक्ति के महत्त्व को स्वीकार किया है।
- ↑ 9, 32; साथ ही देखिए 11, 53-54; 12, 1-5। “व्याध ने कौन-से अच्छे आचरण किए थे? ध्रुब की आयु ही क्या थी? गजेन्द्र का ज्ञान कितना था? उग्रसेन ने क्या वीरता दिखाई थी? कुब्जा की सुन्दता क्या थी? सुदामा के पास कितना धन था? भगवान् तो भक्ति के प्रेमी हैं और वे भक्ति से प्रसन्न होते हैं। वे (अन्य) गुणों की कोई परवाह नहीं करते।”
व्याधस्याचरणं ध्रुवस्य च वयो विद्या गजेन्द्रस्य का, जातिर्विदुरस्य यादवपतेरूग्रस्य कि पौरूषम्। कुब्जयाः कमनीयरूपमधिकं किं तत् सुदाम्नो धनं, भक्त्या तुष्यति केवल न तु गुणैः भक्तिप्रियो माधवः॥
नरत्वं देवत्वं नगवनमृगत्व मशकता, पशुत्वं कीटत्वं भवतु विहगत्वादिजनम्।
दसा त्वत्पादाब्जस्मरणपरमानन्दलहरी, विहारासक्तं चेद् हृदयमिह किं तेन वपुषा॥ - ↑ 9, 13
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