भगवद्गीता -राधाकृष्णन पृ. 4

भगवद्गीता -डॉ. सर्वेपल्लि राधाकृष्णन

Prev.png
2.काल और मूल पाठ

इन विभिन्न मतों का कारण यह तथ्य प्रतीत होता है कि गीता में दार्शनिक और धार्मिक विचार की अनेक धाराएं अनेक ढंगों से घुमा-फिराकर एक जगह मिलाई गई है; अनेक परस्पर-विरोधी दीख पड़ने वाले विश्वासों को एक सीधी-सादी एकता में गूंथ दिया गया है, जिससे वे सच्ची हिन्दू भावना से उस काल की आवश्यकता को पूरा कर सके और इन सब विश्वासों के ऊपर इस भावना ने परमात्मा की चारूता बिखेर दी है। गीता विभिन्न विचारधाराओं में मेल बिठाने में कहाँ तक सफल हुई है, इस प्रकार का उत्तर सारे ग्रन्थ को पढ़ने के बाद पाठक को अपने लिए स्वयं देना होगा। भारतीय परम्परा में सदा ही यह अनुभव किया गया है कि परस्पर असंगत दीख पड़ने वाले तत्त्व गीता के लेखक के मन में मिलकर एक हो चुके थे और जो शानदार समन्वय उसने सुझाया है। और स्‍पष्‍ट किया है, वह सच्चे आत्मिक जीवन को बढ़ाता है, भले ही गीताकार ने उसे युक्तियां देकर विस्तारपूर्वक सिद्ध नहीं किया।

अपने प्रयोजन के लिय हम गीता के उस मूल पाठ को अपना सकते हैं, जिसे शंकराचार्य ने अपनी टीका में अपनाया हैं, क्योंकि इस समय गीता की वही सबसे पुरानी विद्यमान टीका है।[1]

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कश्मीरी संस्करणों में मूल पाठ में जो थोड़े-बहुत अन्तर दिखाई पड़ते हैं, उनका गीता की सामान्य शिक्षाओं पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता। देखिए एफ़० ए० श्रेडर की पुस्तक ‘द कश्मीर रिसैन्शन ऑफ़ द भगवद्गीता’ (1930)

संबंधित लेख

भगवद्गीता -राधाकृष्णन
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
परिचय 1
1. अर्जुन की दुविधा और विषाद 63
2. सांख्य-सिद्धान्त और योग का अभ्यास 79
3. कर्मयोग या कार्य की पद्धति 107
4. ज्ञानमार्ग 124
5. सच्चा संन्यास 143
6. सच्चा योग 152
7. ईश्वर और जगत 168
8. विश्व के विकास का क्रम 176
9. भगवान अपनी सृष्टि से बड़ा है 181
10. परमात्मा सबका मूल है; उसे जान लेना सब-कुछ जान लेना है 192
11. भगवान का दिव्य रूपान्तर 200
12. व्यक्तिक भगवान की पूजा परब्रह्म की उपासना की अपेक्षा 211
13. शरीर क्षेत्र है, आत्मा क्षेत्रज्ञ है; और इन दोनों में अन्तर 215
14. सब वस्तुओं और प्राणियों का रहस्यमय जनक 222
15. जीवन का वृक्ष 227
16. दैवीय और आसुरीय मन का स्वभाव 231
17. धार्मिक तत्त्व पर लागू किए गए तीनों गुण 235
18. निष्कर्ष 239
19. अंतिम पृष्ठ 254

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः