भगवद्गीता -राधाकृष्णन पृ. 199

भगवद्गीता -डॉ. सर्वेपल्लि राधाकृष्णन

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अध्याय-10
परमात्मा सबका मूल है; उसे जान लेना सब-कुछ जान लेना है
परमात्मा की अन्तर्यामिता और लोकातीतता

   
42.अथवा बहुनैतेन किं ज्ञातेन तवार्जुन।
विष्टभ्याहमिदं कृत्स्नमेकांशेन स्थितो जगत्॥

परन्तु हे अर्जुन, तुझे इस विस्त्रृत ज्ञान की क्या आवश्यकता है? मैं इस सम्पूर्ण विश्व को अपने जरा-से अंश द्वारा व्याप्त करके इसे संभाले रहता हूँ। एकांशेन: एक अंश द्वारा। इसका यह अर्थ नहीं हैं कि ब्रह्म की एकता अनेक अंशों में खण्डित हो जाती है। यह ब्रह्माण्ड असीम ब्रह्म का एक आंशिक प्रकटन (अभिव्यक्ति) है और यह उसके देदीपयमान प्रकाश की एक किरण से प्रकाशित है।[1] भगवान् का लोकातीत प्रकाश इस ब्रह्माण्ड से परे और देश तथा काल से परे निवास करता है। इति ... विभूति योग ो नाम दशमोऽध्यायः। यह है ’विभूति योग ’ नामक दसवां अध्याय।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऋग्वेद से तुलना कीजिए: ’पादो अस्य विश्वा भूतानि त्रिपाद् अस्यामृतं दिवि। 10, 90,3। पुरुषसूक्त में कहा गया है कि यह तो केवल उसकी महिमा का वर्णन है, स्वयं पुरुष तो इसकी अपेक्षा कहीं अधिक बड़ा हैं साथ ही देखिए छान्दोग्य उपनिषद्, 3, 12, 6 और मैत्रायणी उपनिषद्, 6, 4। 4, 7 पर टिप्पणी करते हुए अभिनवगुप्त ने, जो ’तदात्मानम्’ के बजाय ’तदात्मांशम्’ पाठ मानता है, लिखा है: श्री भगवान् किस पूर्णषाड्गुण्त्वात् शरीर सम्पर्क मात्ररहितोअपि स्थितिकारित्वात् कारुणिकतया आत्मांश सृजति; आत्मा पूर्णषाड़गुण्य अंशः अपाकारकत्वेन अप्रधानभूतो यत्र तद् आत्मांश शरीरं गृहृाति इत्यर्थः।

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भगवद्गीता -राधाकृष्णन
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
परिचय 1
1. अर्जुन की दुविधा और विषाद 63
2. सांख्य-सिद्धान्त और योग का अभ्यास 79
3. कर्मयोग या कार्य की पद्धति 107
4. ज्ञानमार्ग 124
5. सच्चा संन्यास 143
6. सच्चा योग 152
7. ईश्वर और जगत 168
8. विश्व के विकास का क्रम 176
9. भगवान अपनी सृष्टि से बड़ा है 181
10. परमात्मा सबका मूल है; उसे जान लेना सब-कुछ जान लेना है 192
11. भगवान का दिव्य रूपान्तर 200
12. व्यक्तिक भगवान की पूजा परब्रह्म की उपासना की अपेक्षा 211
13. शरीर क्षेत्र है, आत्मा क्षेत्रज्ञ है; और इन दोनों में अन्तर 215
14. सब वस्तुओं और प्राणियों का रहस्यमय जनक 222
15. जीवन का वृक्ष 227
16. दैवीय और आसुरीय मन का स्वभाव 231
17. धार्मिक तत्त्व पर लागू किए गए तीनों गुण 235
18. निष्कर्ष 239
19. अंतिम पृष्ठ 254

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