भगवद्गीता -राजगोपालाचार्य पृ. 13

भगवद्गीता -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य

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कर्म

इन्द्रिय-विषयों का यही सम्पर्क और उनके प्रति आसक्ति तथा आकर्षण आत्मा के साथ सूक्ष्म रूप में सम्बद्ध रहकर उसका कर्म-भार बनता है। तार्किक के दृष्टिकोण से कार्य के मूल कारण का कोई स्पष्टीकरण या सिद्धांत आपत्तियों अथवा कठिनाइयों से रहित नहीं हो सकता परन्तु, व्यक्तित्व का आधार सनातन आत्मा को मानने पर, हिन्दू कर्म-सिद्धांत की अपेक्षा प्रकृति के ज्ञात नियमों के अधिक अनुकूल कोई सिद्धांत नहीं निकाला जा सकता। मनुष्य अपना विकास अपने अपने कर्म के अनुसार ही करता है। विकास का यह क्रम मृत्यु से भंग नहीं होता, दूसरे जीवन में जारी रहता हैं हिन्दू धर्म का यही सर्वाधिक महत्वपूर्ण सिद्धान्त शक्ति-संचय-नियम के नैतिक क्षेत्र में कार्यान्वित है। वास्तव में इन दोनों को ही एक नियम से भिन्न अंग मानना चाहिए। कर्म, मानो आध्यात्मिक जगत् में नियम का विधान हैं कारण और कार्य समान महत्व के होने चाहिए। मृत्यु से शरीर का, न कि आत्मा का, नाश होता है; अतएव जहां तक आत्मा का संबंध है, कारण और कार्य का नियम मृत्यु के बाद भी कार्यान्वित होता रहता है। शरीर की मृत्यु आत्मा को उसके कर्म-जन्य ऋण से मुक्त नहीं करती। आत्मा का पुराना हिसाब दूसरे जीवन में जारी रहता है।

पानी में छोटे-से-छोटा पत्थर फेंका जाय तो आंदोलन उत्पन्न हो जाता है। गोल-गोल घेरे में लहरें उठकर बराबर फैलती जाती हैं, एक लहर दूसरी लहर को काट सकती है, उसमें मिल सकती है, उसे घटा या बढ़ा सकती है, परन्तु छोटे-से-छोेटा आन्दोलन भी व्यर्थ नहीं हो सकता। इसी प्रकार का परिणाम हमारे सब कामों का, जिनमें विचार भी सम्मिलित हैं, होता है। मन में आया हुआ सूक्ष्मतम और गुह्यतम विचार भी विश्वव्यापी आत्मा की शान्ति भंग कर देता है और इस प्रकार उत्पन्न हुए आंदोलन को शान्त करना आवश्यक है।

दूसरों पर होने वाले परिणाम के अतिरिक्त, और पुरस्कार अथवा दंड के प्रश्न से अलग, हम किसी सिद्धान्त की मदद के बिना भी देख सकते हैं कि प्रत्येक विचार और कार्य का, चाहे वह भला हो या बुरा, हम पर तुरन्त परिणाम होता है। मन के प्रत्येक आन्दोलन का हमारे चरित्र और उसके विकास पर, हम चाहें या न चाहें पक्का असर पड़ता है। उससे हमारे चरित्र का विकास अच्छा या बुरा होता है यदि मैं आज कोई बुरा विचार करता हूँ तो कल उसे अधिक तत्परता और आग्रह के साथ करूँगा। यही बात अच्छे विचारों के बारे में भी है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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