भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
श्रीरासलीलारहस्य
व्याख्या- ‘तदा’ अर्थात जिस क्षण में भगवान को रमण की इच्छा हुई उसी समय चन्द्रमा उदित हुआ, क्योंकि सेवक की यह रीति है कि जिस समय स्वामी की इच्छा हो उसी समय सेवा में उपस्थित हो जाय। ये उडुराज क्यों उदित हुए? क्योंकि ये उद्दीपन विभाव हैं अर्थात भगवान की जो रमणेच्छा है उसे और भी उद्दीप्त करने के लिये ही इनका प्राकट्य हुआ है। ‘उडुराज’ शब्द का अर्थ है ‘उडूनां तारकाणां राजा’ अर्थात तारों का राजा। इससे उस समय चन्द्रदेव का सपरिवार उदित होना ध्वनित होता है। उनके अभ्युदय से ही चर्षणी जो समस्त प्राणी उनके शरत्कालीन सूर्य से प्राप्त हुए ताप और मनोग्लानि शान्त हो गयी। श्रीगोसाईं जी महाराज कहते हैं-
वे उदित किस प्रकार हुए?- प्राच्याः ककुभः मुखं करैर्धृतेन अरुणेन विलिम्पन्’ अर्थात अपनी शीतल और सुकोमल किरणों में धारण किये हुए अरुण राग से पूर्व दिशा के मुख को लेपित करते हुए मानों इस प्रकार नायक-नायिका की रीति को प्रदर्शित करते हुए चन्द्रदेव यहाँ श्रृंगार रस के उद्दीपन बने हुए हैं। यद्यपि चन्द्रमा का सम्बन्ध सभी दिशाओं से है तथापि उनमें पूर्वादिक् ही प्रधान है। अतः पूर्वदिशा के साथ संश्लिष्ट होकर अपनी किरणों में धारण किये हुए अरुण से उसका मुखलेपन करता हुआ और स्वयं भी अनुरक्त होता हुआ वह उदित हुआ। अर्थात प्राची दिशा से संश्लिष्ट होने पर चन्द्रमा ने उसे भी अनुरक्त किया और वह स्वयं भी अनुरंजित हुआ। इससे पूर्वादिक-संसर्ग से उसका अनुराग होना स्वयं सिद्ध है, जैसे नायिका के प्राप्त होते ही नायक अनुरक्त हो जाता है। इसका भी विशेषण है ‘दीर्घदर्शनः’। यह ‘उडुराजः’ और ‘प्रिय’ दोनों ही का विशेषण हो सकता है। ‘दीर्घ बह्वीनां रात्रीणामन्ते दर्शनं यस्य स दीर्घदर्शनः’ अर्थात जिसका दर्शन बहुत-सी रात्रियों के पश्चात् हुआ हो उसे दीर्घदर्शन कहते हैं। पूर्व दिशा के साथ चन्द्रमा का ठीक-ठीक सम्बन्ध पूर्णिमा को ही होता है, इसलिये चन्द्रमा दीर्घदर्शन है। इधर दृष्टान्त पक्ष में यह प्रिय का भी विशेषण है। अर्थात जिसका दर्शन बहुत काल के पश्चात् हुआ है ऐसा कोई प्रियतम जिस प्रकार ‘शन्तमैः करैः’ अपने सुखावह कर-व्यापारों से प्रियतमा का शोक निवृत्त करता है उसी प्रकार चन्द्रमा अपनी किरणों से पूर्व दिशा के मुख को रागरंजित करता हुआ उदित हुआ। इस प्रकार कर-व्यापारों से भी श्रृंगार रस का उद्दीपन ही सूचित होता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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