भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
श्रीरासलीलारहस्य
जिस प्रकार इन्द्रिय गोलक से इन्द्रिय-तत्त्व सर्वथा भिन्न और अतीन्द्रिय है उस प्रकार योनि तत्त्व भी योनि गोलक से सर्वथा भिन्न है। जो योनि तत्त्व का उद्गम स्थल जागतिक सृष्टि का मूल कारण है वही मूलयोनि तत्त्व है और उसी को ‘प्रकृति’ भी कहते हैं। पुरुष का अंशभूत चैतन्य-प्रतिबिम्ब ही वीर्य है। अतः यह नियम है कि प्रकृति और पुरुष का संसर्ग होने पर ही सृष्टि हुआ करती है। अस्तु इस प्रकार प्राथमिक काम साक्षान्मन्मथ है। वह विकृत रसस्वरूप है। उस विकृत रस का याथात्म्य या अधिष्ठान अविकृत रसात्मक परब्रह्म ही है। विकृत रस में जो मन्मथत्व या मोहकत्व है वह अपने अधिष्ठान से ही आता है। अतः उसका अधिष्ठान-भूत परब्रह्म ही ‘साक्षान्मन्मथमन्मथ’ है। जिस प्रकार भगवान को चक्षु का चक्षु, श्रोत्र का श्रोत और मन का मन कहा जाता है उसी प्रकार वे काम के काम अर्थात माधवमूर्ति में विराजमान हैं। इसलिये वे ‘साक्षान्मन्मथमन्मथ’ हैं। भगवान जो चक्षु के चक्षु, श्रोत्र के श्रोत्र, मन के मन और प्राण के प्राण कहे गये हैं उसका क्या रहस्य है? श्रोत्र किसे कहते हैं? जो इन्द्रिय शब्द-प्रकाशन में समर्थ है उसका नाम ‘श्रोत्र’ है। भगवान उसे शब्द-प्रकाशन का सामर्थ्य प्रदान करते हैं, इसलिये वे श्रोत्र के श्रोत्र हैं। इसी प्रकार वे चक्षु के चक्षु, मन के मन और प्राण के प्राण भी हैं तथा वे ही साक्षात मन्मथमन्मथ हैं। मन्मथ काम को कहते हैं। नायक-नायिका के पारस्परिक स्नेहविशेष का नाम ‘काम’ है। वह एक प्रकार का रस है और भगवान भी रसस्वरूप हैं; ‘रसो वै सः’। भगवान सम्पूर्ण रसों के अधिष्ठान हैं; वे निर्विशेष रसस्वरूप हैं तथा संसार में जितने रस हैं वे उन रसमय के ही विशेष विकास हैं। सिद्धान्त दृष्टि से देखा जाय तो शुद्ध सत अशेषविशेष-निर्मुक्त परब्रह्म ही है। इसी प्रकार शुद्ध चित् भी वही है। सत् और चित् में भी कोई भेद नहीं है। जिसकी सत्ता होगी उसका भान भी अवश्य होगा और जिसका भान होगा उसकी सत्ता भी अवश्य होगी। अतः जो सत् है वही चित् है और जो चित् है वही सत् है। जिस प्रकार सच्चित् सम्पूर्ण प्रपंच का कारण है उसी प्रकार आनन्द भी है। ‘आनन्दाद्ध्येव खल्विमानि भूतानि जायन्ते, आनन्देन जातानि जीवन्ति, आनन्दं प्रयन्त्यभिसंविशन्ति।’ जिस प्रकार सर्वविशेषण निर्मुक्त सत् ब्रह्म है उसी प्रकार निर्विशेष आनन्द भी शुद्ध परब्रह्म ही है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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