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भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
शिवलिंगोपासना-रहस्य
इत्यादि मन्त्रों में अग्नि को ही रुद्र कहा गया है। ‘‘स्थिरैरङ्गैः पुरुरूप उग्रो बभ्रुः शुकेभिः पिपिशे हिरण्यैः।’’ यहाँ रुद्र को पूरुरूप, असाधारण तेजस्वी और बभ्रुवर्ण कहा गया है। वैदिकों के यहाँ शिव पूजा की सामग्रियों में कोई भी तामस पदार्थ नहीं है। बिल्वपत्र, पुष्प, फल, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से ही भगवान की पूजा होती है। मद्य, मांस का तो शिवलिंग पूजा में कभी भी उपयोग नहीं होता। अतः शिव तामस देवता हैं यह कहना अनभिज्ञता है। हाँ, त्रिमूर्त्यन्तर्गत शिव कारणवस्था के नियन्ता माने जाते हैं। कारण या अब्यक्त की अवस्था अवष्टम्भात्मक होने से तमः- प्रधाना कही जा सकती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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