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भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
शिवलिंगोपासना-रहस्य
जो भुवन का पिता है, बड़ा है, प्रेरक और ज्ञानी है, उस अजर की हम प्रस्तुति करते हैं इत्यादि। जो कहते हैं कि अग्नि ही वेद के रुद्र हैं, उन्हें इस बात पर ध्यान देना चाहिये कि अग्नि, जल क्या, सभी प्रपंच में रुद्र रहते हैं, जब रुद्र से भिन्न दूसरा तत्त्व ही नहीं है, तब अग्नि आदि सभी रुद्र हों यह ठीक ही है।
मुमुक्षु उस रुद्र परमात्मा को मनुष्य के भीतर बुद्धि द्वारा जानना चाहते हैं। रुद्र से उत्पन्न सब रुद्र ही हैं। तत्त्वमस्यादि महावाक्यों के अनुसार उनकी भी एक दिन महारुद्र परमात्मा होना पड़ेगा।
इत्यादि मन्त्रों में भी परमात्मा को ही रुद्र, महादेव आदि कहा गया है। जो कहते हैं कि शिव से पृथक रुद्र हैं, उन्हे वेदों के ही अन्यान्य मन्त्रों पर ध्यान देना चाहिये, जिनमें स्पष्ट रूप से परमेश्वर के लिये ही शिव, त्र्यम्बक (शिव), महादेव, महेशान, परमेश्वर, ईशान, ईश्वर आदि शब्द आये हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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