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भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
शिवलिंगोपासना-रहस्य
शिव स्वयं अलिंग है, उनसे लिंग की उत्पत्ति होती है, शिव लिंगी और शिवा लिंग हैं। ज्ञापक होने से, प्राणियो का आलय होने से एवं लयाधिकरण होने से भी वहीं लिंग हैं- ‘‘लीयमानमिदं सर्वं ब्रह्मण्येव हि लीयते।’’ भिन्न-भिन्न कामना से शिवलिंग के विधान भी पृथक-पृथक हैं- यवमय, गोधूममय, सिताखण्डमय, लवणज, हरितालमय, त्रिकटुकमय (शुण्ठी, पिप्पली, मरीचमय) ऐश्वर्य-पुत्रादिकाम प्रदायक लिंग है। गव्यधृतमय लिंग बुद्धिवर्द्धक है। पार्थिव लिंग सर्वकामप्रद है। तिल-पिष्टमय, तुषज, भस्मोत्थ, गुडमय, गन्धमय, शंर्करामय, वंशांकुरज, गोमयज, केशमयज, अस्थिमयज, दधिमय, दुग्धमय, फलमय, धान्यमय, पुष्पमय, धात्रीफलोद्भव, नवनीतमय, दूर्वाकाण्डसमुद्भव, कर्पूरज, अयस्कान्तमय, वज्रमय, मौक्तिकमय, महानीलमय, महेन्द्र नीलमणिमय, चीरसमुद्भव, सूर्यकान्तामणिज, चन्द्रकान्ता मणिमय, स्फाटिक, शुलाख्यमणिमय, वैडूर्य, हैम, राजत, आरकूटमय, काँस्यमय, सीसकमय, अष्टधातु निर्मित, ताम्रमय, रक्तचन्दनमय, रंगमय, त्रिलोकमय, दारुज, कस्तूरिकामय, गोरीचनमय, कुंकुममय, श्वेतागुरुमय, कृष्णा-गुरुमय, पाषाणमय, लाक्षामय, वालुकामय, पारदमय लिंग भिन्न-भिन्न कामनाओं की पूर्ति के लिये पूजनीय बतलाये गये हैं। पार्थिव पूजन के लिये ब्राह्मणादि वर्णों को क्रम, से शुक्ल, पीत, रक्त, कृष्णवर्ण की मृत्तिका से शिवलिंग बनाना चाहिये। तोलाभर मिट्टी से अंगुष्ठपर्व के परिमाण का लिंग बनाना चाहिये। पूजा भी वैदिक, तान्त्रिक एवं मिश्र विधि या नाममन्त्रों से करनी चाहिये। किंबहुना, शिवलिंग की विशेषताओं, पूजाओं एवं विधियों पर शास्त्रों में बहुत बड़ी सामग्री भरी पड़ी है। बाण और नार्मद लिंग की परीक्षा के लिये उसे तण्डुलादि से सात बार तौला जाता है। यदि दूसरी बार तौलने मे तण्डुल बढ़ जाय, लिंग हलका हो जाय, तो वह गृहियों को पूज्य है। यदि लिंग अधिक ठहरे, तो वह विरक्तों के पूजने योग्य है और सात बार तौलने पर भी बढ़े ही, घटे नहीं, तो उसे बाणलिंग, अन्यथा नार्मद लिंग जानना चाहिये। प्रायः शिव को अनार्य देवता बतलाया जाता है, परन्तु वेदों में शिव का बहुत प्रधानरूप से वर्णन है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्वेताश्वतर. 3।2
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