विषय सूची
भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
शिवलिंगोपासना-रहस्य
अनन्त चैतन्य परमात्मा शिव है, वही सृष्ट्युन्मुख होने पर लिंग ही है। उन्हीं का आधार योनि प्रकृति है, शिव लिंगरूप में पिता, प्रकृति योनिरूप में माता है-
शिव का लिंग योनिभाव ही अर्द्धनारीश्वर का भाव है। सृष्टि के बीज को देखने वाले परमलिंगरूप श्रीशिव प्रकृतिरूपा नारीयोनि में आधार धेयभाव से संयुक्त होकर उससे आच्छदित होकर व्यक्त होते हैं। यही जगन्माता-पिता के आदि सम्बन्ध का द्योतक है। काम-वासनारहित शद्ध मैथुन भी पितृऋण से उऋण होने का साधन है। शिवपुराण में लिखा है- बिन्दु देवी और नाद शिव है। बिन्दुरूपा देवी माता और नादरूपा शिव पिता है, अतः परमानन्द-लाभार्थ शिवलिंग का पूजन परमावश्यक है।
भग के सहित लिंग और लिंग के सहित भग पूजित होकर इहलोक-परलोक में विविध सुख देने वाला है। सदाशिव से उत्पन्न चैतन्यशक्ति द्वारा जायमान चिन्मय आदि पुरुष ही शिवलिंग है। समस्त पीठ अम्बामय है, लिंग चिन्मय है। भगवान शंकर कहते हैं कि जो संसार के मूल कारण महाचैतन्य को और लोक को लिंगात्मक जानकर लिंग पूजा करता है, मुझे उससे प्रिय अन्य कोई नर नहीं -
लिंग चिह्न है, सर्वस्वरूप की पूजा कैसे हो, इसलिये लिंग की कल्पना है। आदि एवं अन्त में जगत अण्डाकृति ही रहता है। अत एव, ब्रह्माण्ड की आकृति ही शिवलिंग है। शिवशक्ति के सहवास से ही पशु, पक्षी, कीट, पतंगादिकों की भी उत्पत्ति होती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज