भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
व्रज-भूमि
उनका भाव है कि “हे दयित! हे चपल! आपके सुख के लिये ही हम इन प्राणों को धारण करती हैं। हृदयेश्वर! यदि यह देह, प्राण, आत्मादि आपके उपयोग में न आयें तो ये किस काम के? हम लोग तो आपके लिये ही इन सौन्दर्य-माधुर्य-सौगन्ध्य-सौकुमार्य आदि गुणों की रक्षा करती हैं। हे प्राणवल्लभ! नन्दलाल! समस्त सौख्यजात तथा तच्छेषी आत्मा- ये सभी आपके लोकोत्तर मनोहन मन्दहास-माधुर्य-सुधासिन्धु पर न्योछावर हैं। किंवा, पादारविन्दगत नखमणि-ज्योत्स्ना पर राई-नोन के समान वारने योग्य हैं।” धन्य है वह मंगलमय व्रजधाम जो ऐसी व्रजराजकुमार-प्रेयसी व्रजदेवियों के पादपद्म से समलंकृत हैं; जहाँ नयनाभिराम घनश्याम मनमोहन की मोहिनी मुरली का की मधुर ध्वनि से त्रिलोकी के चराचर चकित हो रहे हैं; जहाँ श्रीकृष्णचन्द्र-मुखपंकज-निर्गत वेणुगीत-पीयूष से पाषाण द्रवीभूत होकर बह चले तथा प्रेमार्त होकर कलिन्द-नन्दिनी महेन्द्र-नीलमणि के सदृश घनीभूत हो गयी; जहाँ गौएँ छविधाम घनश्याम के परम कमनीय माधुर्य का अनिमीलित नयनपुटों से अधैर्य के साथ पान कर रही हैं और श्रोत्रपुटों से वेणुगीत पीयूष का आस्वादन कर रही हैं; जहाँ प्रेमविभोर वत्सवृन्द सुतवत्सला जननी के प्रेमप्रसृत स्तन्यामृत-पान के लिये प्रवृत्त हुए, परन्तु वंशी-निनाद-मन्त्र से मुग्ध हो गये और उनके मुख से दुग्ध बाहर गिरने लगा, अन्दर ले जाने की क्रिया को वे भूल गये; जहाँ के मृग-विहंग भी विविध प्रकार के उपचारों से प्रियतम की प्रसन्नता के लये व्यग्र हैं। जिस परमपावन धाम में तरुलता-गुल्मादि भी वेणुछिद्र-निर्गत शब्द-ब्रह्मरूप में परिणत भगवदीय अधरसुधा का पान कर कुड्मलपुष्प-स्तबकादिरूप रोमांचोद्गम छद्म से तथा मधुधारारूप हर्षाश्रुविमोक से, अपने दुरन्त भाव का व्यक्तीकरण कर रहे हैं; जिस धाम में प्रेमातिशय से प्रभु पादपपद्माकिंत व्रजभूमिगत ब्रह्मादिवन्द्यरज के स्पर्श के लिये आज भी समस्त तरुलताएँ विनम्र हो रही हैं; अथवा मनमोहन के दिये हुए निर्भर प्रेम के भास से ही विनम्र हो रही हैं; जिस व्रज की प्रत्येक वस्तु, प्रत्येक परमाणु, बलात्कार से जीवन-धन की स्मृति उत्पन्न कर प्रियतम के सम्मिलन की उत्कण्ठा को उत्तेजित करते हैं। जिस व्रज में निवास करने वाले सौभाग्यशाली महापुरुषधौरेयों के ऋणी अनन्तकोटि-ब्रह्माण्ड-नायक को भी होना पड़ा, उस व्रज का महत्त्व किन शब्दों में, किस लेखनी द्वारा व्यक्त किया जाय? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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