भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
निर्गुण या सगुण?
ये भक्त उसी तरह कभी निर्विकल्प समाधि से भगवान के अंग में उनके साथ एकमेक होकर विराजमान होते हैं और कभी श्रद्धाभक्ति से भगवान के श्रीचरणकमल के सौन्दर्य-माधुर्यादि का सेवन करते हैं, जिस तरह प्रेयसी कभी प्रियतम के अंक में एवं वक्षस्थल पर यथेष्ट क्रीड़ा करती है और कभी सावधानी से प्रियतम के पादपद्म का आराधन करती है। “प्रियतमहृदये वा खेलतु प्रेमरीत्या पदयुगपरिचर्याम्प्रेयसी वा विधत्ताम्। जैसे चतुर नायिका प्रियतम के साथ एकमेक होकर भी व्यवहार में अपने प्रियतम को चैलांचल के व्यवधान (घूँघट पट की ओट) से ही देखती है।
ठीक वैसे ही ज्ञान यद्यपि अपने निरतिशय निरुपाधिक प्रत्यक्चैतन्याभिन्न भगवान के साथ सर्वथा एकमेक ही रहते हैं, तथापि व्यवहार में भेद-भावना से ही अपने भगवान की भक्ति करते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज