भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
निर्गुण या सगुण?
इक्षु (ईख) दण्ड और चन्दन वृक्ष की मधुर और सुगन्धित होते हैं। यदि कदाचित् इक्षु में सुमधुर फल और चन्दन वृक्ष में अतिसुन्दर और सुगन्धित पुष्प प्रकट हो तो उनकी मधुरता और सौगन्ध्य की जितनी ही बड़ाई की जाय उतनी ही कम है। इसी तरह अनन्त ब्रह्माण्डान्तर्गत आनन्दबिन्दु का उद्गमस्थान अचिन्त्य अनन्त परमानन्दघन ब्रह्म ही अद्भुत रसमय है। फिर उसके फलरूप मधुर मंगल स्वरूप में कितना चमत्कार हो सकता है, यह सहृदय ही जान सकते हैं। इक्षुरससार शर्करासिता आदि का सार जैसे कन्द होता है, वैसे ही औपनिषद् परब्रह्म-रससार भगवान का मधुर मनोहर सगुण स्वरूप है। तभी किसी ने श्रीकृष्ण को देखकर कल्पना की थी कि क्या यह श्रीव्रजांगनाओं का प्रेमरससारसमूह है, अथवा सात्वतवृन्द का मूर्तिमान् सौभाग्य है, किंवा श्रुतियों का गुप्तवित्त ब्रह्म ही श्यामल मोहमयी मूर्ति को धारण करके प्रकट हुआ है-
इसी तरह-
कुछ महानुभाव निगमाटवी के ब्रह्मतत्त्वान्वेषकों के परिश्रम पर दयार्द्र होकर उनके अन्वेष्टव्य ब्रह्म को यशोदा के उलूखल में बँधा हुआ बतला रहे हैं, तो कुछ श्रीमन्ननन्दराय के प्रांगण में धूलिधूसरित वेदान्त सिद्वान्त के नृत्य का कौतुक बता रहे हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज