भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
वेदान्त-रससार
यदि पूछा जाय कि फिर किसका बन्धमोक्ष तात्त्विक है, तो इसका उत्तर यही है किसी का नहीं। अत: “न निरोधो न चोत्पत्तिर्न बद्धो न च साधकः। न मुमुक्षुर्न वै मुक्त इत्येषा परमार्थता।” “अज्ञानसंज्ञौ भवबन्धमोक्षौ द्वौ नाम नाऽन्यौ स्त ऋतज्ञभावात्।” सत्यज्ञानानन्दात्मक भगवान से भिन्न होकर बन्धमोक्ष नाम के कोई पदार्थ नहीं हैं। केवल अज्ञान से बन्ध और मोक्ष ये दो संज्ञाएँ होती हैं, अतः केवल कल्पित-उपाधि से कल्पित प्रदेश में कल्पित ही गमनागमन और कल्पित ही बन्ध-मोक्ष होते हैं। कल्पितोपाधि का अनुगामी जो कल्पित प्रदेश है वही कल्पित बन्ध से पीड़ित और कल्पित मोक्ष से मुक्त होता है। यदि बन्ध सत्य हो तभी मोक्ष भी सत्य हो सकता है। अधिष्ठानावशेष के अभिप्राय से भगवत्प्राप्ति, मोक्ष या निरावरण भगवान ही सत्य हैं। इसी तरह “यथा ह्ययं ज्योतिरात्मा विवस्वानपो भिन्ना बहुधैकोनुगच्छन्” इत्यादि श्रुति-स्मृतियों में परमात्मा के जीवरूप से प्रवेश में दृष्टान्तरूप से यह आया है कि जैसे एक ही सूर्य भिन्न-भिन्न जल में प्रविष्ट होकर अनेकधा भासमान होते है, वैसे ही परमात्मा भिन्न-भिन्न उपाधियों में प्रविष्ठ होकर अनेकधा भासमान होते हैं। ऐसे ही “घटे भिन्ने घटाकाश आकाश: स्याद्यथा पुरा” इत्यादि वचनों में जैसे घट के नष्ट होने में घटाकाश का महाकाश में मिलना होता है, वैसे ही उपाधि-भंग होने पर उपहित जीव निरुपाधिक परमात्मा में ही मिल जाता है। इन उक्तियों के आधार पर पारमार्थिक अभेद और व्यावहारिक भेदसिद्धि के लिये ये सभी दृष्टान्त ग्रहण किये जाते हैं। यहाँ आत्मा के प्रतिबिम्ब समर्थन की कोई आवश्यकता नहीं है। इस बात को प्रायः सभी दार्शनिक मानते हैं कि आत्मा स्वयं यद्यपि स्थौल्य, कार्श्य, श्यामत्व, गौरत्वादि धर्मों से विवर्जित है, तथापि देह के साथ विलक्षण सम्बन्ध के कारण देहगत ही स्थौल्यादि धर्म आत्मा में भासमान होते हैं। ठीक इसी तरह प्रतिबिम्बवादियों का यही आशय है कि आत्मा स्वयं यद्यपि अकर्ता, अभोक्ता, नित्य, शुद्ध, बुद्ध, मुक्त स्वभाव, सर्वभासक भावरूप है, तथापि देह, इन्द्रिय, मन, बुद्धि प्रभृति उपाधियों के संसर्ग से आत्मा में कर्तृव्य, भोक्तृत्वादि अनर्थ उसी तरह भासित होने लगते हैं, जैसे अचंचल एवं स्वच्छ सूर्य का चंचल एवं मलिन जल में प्रतिबिम्ब होने पर जल की ही चंचलता एवं मलिनता सूर्य में भासित होने लगती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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