भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
वेदान्त-रससार
विद्या या मायारूप उपाधि से उपहित चैतन्य ईश्वर-चैतन्य है और अविद्या उपाधि से उपहित चैतन्य जीवचैतन्य है। तामसी प्रकृति से भोग्यवर्ग का प्रादुर्भाव होता है। इस तामसी प्रकृतियुक्त परमात्मा से महत्तत्त्व एवं महतत्त्व से अहंतत्त्व की उत्पत्ति होती है। यद्यपि श्रुतियों में “तस्माद्वा एतस्मादात्मनः आकाशः सम्भूता” इत्यादि वचनों द्वारा सीधे परमात्मा से ही आकाश की उत्पत्ति होना प्रतीत होता है तथापि “बुद्वेरात्मा महान् परः, महतः परमव्यक्तं अव्यक्तात्पुरुषः परः” इत्यादि श्रुतियों से ज्ञात होता है कि “परमात्मा और उनकी शक्ति अव्यक्त के अनन्तर एवं आकाश के पहले महतत्त्व तथा अहंतत्त्व नामक पदार्थ भी हैं।” 'गीता' ने भी “महाभूतान्यहंकारो बुद्धिरव्यक्तमेव च” इस श्लोक से अपंचीकृत (परस्पर असम्मिलित) आकाशादि पृथिव्यन्त पंचभमहाभूत एवं अहंकार (अहंतत्त्व), बुद्धि (महत्तत्त्व) तथा ‘अव्यक्त तत्त्व’ इन आठ प्रकृतियों के रूप में उन्हीं का वर्णन किया है। उन्हीं का “भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च। अहंकार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा।।” इस श्लोक में भी वर्णन किया है। इस श्लोक में मन शब्द से आकाश के कारण अहंतत्त्व को ही समझना चाहिये, बुद्धि पद से अहंतत्त्व का कारण महत्तत्त्व को समझना चाहिये और अहंकार से महत्तत्त्व का कारण अव्यक्त को समझना चाहिये क्योंकि ऐसा ही प्रकृति-विकृति भाव सर्वत्र प्रसिद्ध है। यथाश्रुत मन, बुद्धि एवं अहंकार का कार्य कारण भाव कहीं भी प्रसिद्ध नहीं है और यहाँ “भिन्ना प्रकृतिरष्टधा” से भिनन-भिन्न आठा प्रकृतियाँ विवक्षित हैं। यह तभी सम्भव है, जब भूमि का जल से, जल का अनल (तेज) से, अनल का वायु से एवं वायु का आकाश से, आकाश का अहंतत्त्व से, उसका महत्तत्त्व से और महत्तत्त्व का अव्यक्त तत्त्व से आविर्भाव माना जाय। अत: “महाभूतान्यहंकारी बुद्धिव्यक्मेव च” इस गीता वचन में स्पष्ट ही अहंतत्त्व, महत्तत्त्व तथा अव्यक्ततत्त्व का वर्णन है। इस तरह श्रुति-स्मृति के तात्पर्य विवेचन से स्पष्ट विदिन होता है कि साक्षात परमात्मा से आकाश की उत्पत्ति नहीं हुई, अपितु महत्तत्त्व आदि के क्रम से ही हुई है। अत: जहाँ कहीं सत्तत्त्व परमात्मा से सीधे तेज की ही उत्पत्ति श्रुत है, वहाँ भी आकाश एवं वायु की उत्पत्ति के अनन्तर आकाश वायुरूप में आविर्भूत परमात्मा से तेज की उत्पत्ति समझनी चाहिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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