भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
शिव से शिक्षा
आज का संसार शुम्भ-निशुम्भ की तरह विपरीत मार्ग से प्रकृति पर विजय चाहता है। इसीलिये प्रकृति अनेक तरह से उसका संहार कर रहीं है। पार्थिव, आप्य, तैजस, विविधतत्त्वों का अन्वेषण, जल, स्थल, नभ पर शासन करना, समुद्रतल के जन्तुओं, तक की शान्ति भंग करना, तरह-तरह के यन्त्रों का आविष्कार और उनसे काम लेना ही आज का प्रकृतिजय है। इन्द्रिय, मन, बुद्धि और उनके विकारों पर नियन्त्रण करने का आज कोई भी मूल्य नहीं। प्रकृति भी कोयला, लोहा तेल आदि साधारण से साधारण वस्तुओं को निमित्त बनाकर उन्हीं यन्त्रों से उनका संहार करा रही है। आज शिव ‘अनार्य’ देवता बतलाये जा रहे हैं। शिव की आराधना भूल जाने से आज राष्ट्र का भी शिव (मंगल) नहीं हो रहा है-
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