भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
प्रभुकृपा
अर्थात क्रान्तदर्शी लोग विश्व को विनश्वर बतलाते हैं, अध्यात्मविद् विद्वान् विश्व की विनश्वरता का अनुभव भी करते हैं, तथापि आपकी माया से मोहित हो जाते हैं, ऐसे विस्मय जनक कृत्यवाले अज अव्ययात्मा आपको नमस्कार है। इस श्वान, श्रृगाल, गृध्र, काकादि पिशिगशियों के भक्ष्य, अस्थि मांस चर्ममय पंजर, मूत्र-पुरीष-भाण्डागार, मायामय क्षणभंगुर, बुद्बुदोपम देह से उन्हीं लोगों की अहंता-ममता छूटती है और वे ही लोग दुस्तरा गुणमयी, माया को तर सकते हैं, जिन्होंने निष्कपटभाव से सर्वात्मना भगवान के श्रीचरणों का सहारा लेकर उनकी दयादृष्टि को प्राप्त कर लिया है- “येषां स एव भगवान् दययेदनन्तः सर्वात्मनाश्रितपदो यदि निर्व्यलीकम्। अन्यथा अविवेक, अज्ञान से प्रत्यक्ष सिद्ध करतलस्थित आमलक के समान अत्यन्त अपरोक्ष-सर्वात्मभाव भी परोक्ष या असत्कल्प हो जाता है और फिर प्राणी आध्यात्मिकता, आधिदैविकता को भूलकर केवल आधिभौतिक वैषयिक भोग-विलासों के किंकर बनकर आसक्ति, असन्तोष, विद्वेष आदि आसुर भावों से ग्रस्त होकर परस्पर एक दूसरे के संहारक बन जाते हैं। इसीलिये सन्तों ने सर्वदा ही भगवत्कृपा की प्रतीक्षा को मुख्य माना है, अपने और विश्व के कल्याण के लिये प्रभु में चित्त को-निष्काम मति को-जोड़ना ही मुख्य पुरुषार्थ माना है। सम्पूर्ण प्राप्तव्य तत्त्वों की प्राप्ति इतने ही से सम्पन्न हो जाती है। भगवान के श्रीचरणों में अहैतुकी मतिवाले नैष्ठिक भक्त सम्पूर्ण विश्व को, सम्पूर्ण प्राणियों को आत्मवत् भगवत्स्वरूप ही देखते हैं। वे खलों का भी अहित न चाहकर हित ही चाहते हैं। उनके स्वार्थ-परमार्थ में अन्तर नहीं रह जाता। जब प्राणी आत्मसम्बन्धी पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र, कलत्र, मित्र, क्षेत्र, वित्त आदि अत्यन्त अनात्मा को भी प्रेमास्पद बनाकर उनका हित चाहता है, देह, इन्द्रिय, मन, बुद्धि, प्राण आदि में अतिशय प्रेम करता है, तब फिर जब सम्पूर्ण जगत एवं उसके प्राणियों को परमात्मस्वरूप निजात्म रूप ही समझ लेगा, तब उसका विश्व सृहृद् होना उचित ही है। श्रीप्रह्लादजी कहते हैं कि हे अधोक्षज! विश्व का कल्याण हो, खलों के मन में भी प्रसाद हो, उनकी भी उग्रता मिटे, प्राणी एक दूसरे का कल्याण चाहने लगे, मन अशास्त्रीय, अभद्र वस्तुओं का चिन्तन छोड़कर भद्र चिन्तन में निरत हों, हम सबकी अहैतुकी मति आप में प्रतिष्ठित हो-
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज