भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
गणपति-तत्त्व
फिर जब बड़े से बड़े तार्किकों का तर्क भौतिक भावों में ही कुण्ठित हो जाता है, तब व्याप्ति या हेतु तथा हेत्वाभास के ज्ञान से शून्य आधुनिक विद्वानों को देवता या ईश्वर के विषय में तर्क करने का क्या अधिकार है? वे महानुभाव यदि तर्क के स्वरूप को भी ठीक-ठीक निरूपण कर सकें, तो उन्हें यह पता लग सकेगा कि धर्म तथा देवता पर तर्क कुछ काम कर सकता है या नहीं। भला यदि इनसे कोई पूछे कि यह आपने कैसे अनुमान किया कि गणेश अनार्यों के देवता हैं और आदि भारतवासी अनार्य ही हैं? क्या कोई अव्यभिचरित हेतु इसमें आपके पास है? तो ये लोग सिवा अटकलपच्चू कल्पित मिथ्या इतिहास के क्या बतला सकते हैं? परन्तु यदि इनके भ्रमपूर्ण निराधार आधुनिक इतिहास मान्य है, तो प्राचीन आध्यात्मिक गम्भीर भावपूर्ण हमारे इतिहास क्यों मान्य नहीं? अस्तु, आस्तिकों को पूर्वोक्त प्रमाणों से निर्धारित गणपति-तत्त्व का श्रद्धा-सहित समस्त कर्मों में आराधन अवश्य करना चाहिये। पारलौकिक तत्त्व-निर्धारण में एकमात्र शास्त्र हो आदरणीय है। इसीलिये भगवान ने गीता में कहा है कि-
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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