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भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
माँ के श्री चरणों में
हे अम्ब! आप ही तो कामेश्वरांकनिलया अनन्त-ब्रह्माण्डजननी श्रीषोडशी महात्रिपुरसुन्दरी हो। हे जगदम्ब! आप ही मेरे प्रभु, मेरे स्वामी मेरे अशरण-शरण, मेरे दीनबन्धु रामचन्द्र की प्रियतमा हो हे माँ! तुम सदा से मुझे सम्हाल रही हो। माँ! तुम्हारा तो कोई दोष नहीं, मैं व्यामोहवश अपने ही दोषों को आपके विविध स्वरूपों पर धरता हूँ। ‘‘हे चिन्मयि! हे सदानन्दघनस्वरूपे माँ! हे निर्विशेष-सविशेषस्वरूपे! हे निर्गुण-सगुण-निराकार-साकारस्वरूपे! माँ! तुम्ही तो श्रीकृष्ण की प्राणेश्वरी रासेश्वरी नित्यनिकुंजेश्वरी राधारानी हो। माँ तुम्ही परब्रह्ममहिषी साक्षात् परब्रह्मविद्यारूपिणी हो और तुम्ही प्रत्यक्चैतन्य या ब्रह्मस्वरूपा भी हो। माँ! तुम्ही दशमहाविद्या तथा अनन्त उपविद्यास्वरूपा हो। निगमागमवन्दिते! सर्वशास्त्रमहातात्पर्यगोचरे! भगवति! आप सर्वातीत होती हुई भी सर्वस्वरूपा हो, सर्वस्त्रीस्वरूपा, सर्वपुरुषस्वरूपा, जड़-चैतन्य एवं चराचरस्वरूपा भी आप ही हो। माँ! साध्वी-असाध्वी, सती-असती माँ! सब तुम्ही तो हो। माँ! तुम अच्छी हो, तुम तो केवल मेरे पापों के कारण ही दुःख निदान प्रतीत होती हो! माँ! कूलटाएँ और वेश्याएँ क्या आपसे भिन्न है? नहीं-नहीं, माँ! आपको पहचानने में भ्रम है। माँ! मैंने किसी रूप में आप पर दोषारोपण किया हो आपका, अपमान किया हो, तो भी अम्ब! क्षमा करो। माँ! तुम्हारे चरणारविन्द की नखमणिचन्द्रिका से हृदयान्धकार मिटता है। तुम्हारे चरणपंकजपराग से पाप-ताप शान्त होते हैं। माँ! अपनी विरुदावली के अनुसार एक इस असफल, निराश, हताश अधम का भी उद्धार करो, अपने अंक में नहीं तो चरणों में बिठा लो। माँ! दिशाएँ-विदिशाएँ शून्य और सन्तप्त प्रतीत हो रही हैं। कहाँ जाऊँ? क्या करूँ? जगदम्ब! सुरथ के ऐश्वर्य प्रदान और समाधि को व्यामोहनिवृत्तिपूर्वक तत्त्वज्ञान प्रदान करना आपका आपक ही कार्य है। माँ! आपके कृपाकटाक्ष के बिना सहस्रों विचार और ज्ञान अकिंचित्कर हो जाते हैं। माँ! मैं खूब समझ रहा हूँ कि अभीष्ट-सिद्धि और अनिष्ट-निवृत्ति के लिये इधर-उधर भटकना व्यर्थ है, सब कुछ आपके चरणों में ही है। माँ! छाया के पीछे भटकने से भी काम नहीं चलेगा, आपके चरणारविन्द की ओर चलते ही सूर्याभिमुख चलने पर छाया के समान ही माया आयेगी। माँ! फिर यह भी तो बिना आपकी कृपा के सम्भव नहीं है। वत्सले! तुम्हारे चरणों की शरणागति भी तो तुम्हारी ही कृपा का फल है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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