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भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
श्री रासपञ्चाध्यायी
इसी प्रकार क्रम से वायु, वरुण सब गये, पर उस तिनके को न वायु उड़ा सका, न जल गला सका, तब हतप्रभ होकर लौट आये। अन्त में इन्द्र गये। इस अवसर पर वह तेजःपुन्ज अन्तर्हित हो गया। इन्द्र को इससे बड़ा पश्चात्ताप हुआ-‘हा, मुझे तो उस तत्त्व के दर्शन तक न हुए।’ फिर इन्द्र ने ब्रह्मविद्या की आराधना से, उसकी सहायता से, उस तत्त्व का ज्ञान प्राप्त किया। देवताओं का दर्प मिट गया। भगवान श्रीराम के उपासक श्रीजानकी माता की स्नेहभरी अनुकम्पा से श्रीरामतत्त्व के साक्षात्कार में सफल प्रयत्न होते हैं। भगवान की अन्तरंग शक्ति उनकी अपेक्षा कोमल मानी जाती है। स्तुति-कुसुमांजलिकार श्रीजगद्धर भट्ट ने अपनी स्तुति में सरस्वती से कहा- मातः सरस्वती! आप व्याकुल, हताश न होओ, धैर्य धारण करो, अवश्य भगवान शिव आपकी सुध लेंगे, आप गुणगान करती चलो। फिर, उस दरबार में आपका पक्ष समर्थन करने वाली, श्रीगंगा, चन्द्रकला और पार्वती उपस्थित हैं। वे प्रसंग पड़ने पर आपका पक्ष समर्थित करेंगी। क्योंकि स्त्री, अपनी स्त्री जाति का अवश्य पक्षपात करती हैं। यदि भगवान कठोर हैं तो वे उन्हें कोमल बना देंगी-
अगले पद्य में कहा- हे सरस्वति! यदि आप यह समझती हो कि ‘चन्द्रलेखा स्वभाव से ही कुटिल है-टेढ़ी है और गंगा नित्य तरंगिता-अनिश्चित बुद्धि वाली है, इनसे सहायता की सम्भावना नहीं; तब भी कोई चिन्ता नहीं। क्योंकि भगवती जगदम्बा पार्वती तो वहाँ विराजमान हैं ही, वे शैलराज की पुत्री हैं-सद्वंश की सन्तान हैं, कुलीन हैं। अत; दयार्द्र हृदया हैं, पराये दुःख से अकारण ही उनका हृदय पिघल जाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ स्तोत्र 11, श्लोक 24
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