विषय सूची
भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
श्री रासपञ्चाध्यायी
अथवा मान हुआ श्रीवृषभानुनन्दिनी को, वह भी सहसा। वे करुणामयी हैं। उनके प्रसाद लेश से श्रीश्यामसुन्दर का दर्शन सम्भव है। उनके बिना कृष्णतत्त्व का प्राकट्य ही नहीं। ‘आत्मरति’ में आत्मा श्रीरासेश्वरी हैं। जैसे गुण और गुणी का तादात्म्य है, वैसे ही श्रीराधा-कृष्ण तत्त्व का तादात्म्य है। कर्पूर में से सौगन्ध निकल जाय तो कर्पूर कुछ नहीं रह जाता। श्रीवृषभानुनन्दिनी जल में माधुर्यस्थानीया हैं। श्रीश्यामसुन्दर तत्त्व में से माधुर्य निकल जाय, तो फिर वह कुछ है ही नहीं। श्रीनन्दनन्दन का आन्तररमण श्रीरासेश्वरी में ही होता है। बाहर का रमण बहिरंगों में है। किसी भावुक के मत से तो सौगन्ध का पथक होना और उसके ग्राहक घ्राण का अलग होना, यह बड़ा व्यवधान है, असह्य है। पूरा आनन्द तो तब है, जब पुष्प में ही घ्रणण हो। यह यहीं सम्भव है। उनकी शक्ति उनमें और उनकी शक्ति उनमें रहती है। अतः “सर्व वाक्यं सावधारणं भवति’ जहाँ कहीं आत्मा का संचार होगा, जहाँ श्रीरासेश्वरी के स्वरूप का संचार होगा, वहीं रमण होगा। श्रीललिता, विशाखा आदि में रसोदय उनसे सम्बन्ध जुड़ने पर होगा। उनका अनुगमन इसकी तरह हुए बिना रसोदय या रमण नहीं होगा। श्रीरासेश्वरी की कृपा के बिना श्रीकृष्ण को भी रसास्वाद या रमण सम्भव नहीं, अतः दोनों का तादात्म्य ऐकात्म्य स्वीकृत हुआ है। फिर श्रीरासेश्वरी परम करुणामयी हैं, इसी बल पर वे कृतकृत्य हुए। जो सखियों के प्रति यदाकदा उनमें ईर्ष्यादि देख पड़ती है, वे सब लीला रससंचारार्थ हैं। सूक्ष्म विचार करने पर तो नित्य निकुंज में मान आदि का प्रवेश ही नहीं। परन्तु इन स्थूलमान आदि का ही वहाँ संचार नहीं, सूक्ष्ममान आदि तो रसापोषार्थ वहाँ भी हैं ही। वहाँ सर्वादिक सम्प्रयोग है, कभी विप्रयोग होता ही नहीं। तथापि रस की सब अवस्था प्रकट होती रहती है। नेत्र में उन्मीलन-निमीलन मात्र में विप्रयोग आदि हो जाते हैं। अस्तु, इसी दृष्टि से श्रीव्रजेश्वरी रासेश्वरी में ईर्ष्या का संचार हुआ और मेरे प्रभु, मेरे ही प्राणधन अन्यों को भी ऐसा मान देते हैं, इस तरह का मान उत्पन्न हुआ तथा अन्यों में गर्व का उदय हुआ। अतः ‘प्रशमाय प्रसादाय तत्रैवान्तरधीयत’। अहो! प्रभु की भक्तवश्यता? जो प्रभु केशव हैं, “कश्च ईश्च केशौ तावपि वशयतीति सः” अर्थात् ब्रह्मा तथा रुद्र को भी जो वश में रखने वाले हैं, वे भगवान गोपीगर्वापहारार्थ अन्तर्धान हुए। परन्तु यह ऐश्वर्य श्रीरासेश्वरी का मान दूर करने में कैसे समर्थ होगा? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज