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भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
श्री रासपञ्चाध्यायी
श्रीश्यामसुन्दर मदनमोहन के वियोग में जब गोपांगनाएँ व्यथित हुईं, वह विप्रयोगाग्निताप शनैः शनैः जब उनके अन्तःकरण में प्रविष्ट हुआ, तब उनके ताप को, दुः,ख को दूर करने के लिये श्रीभगवान की लीला शक्ति प्रकट हुई। अन्तर्हित शब्द का अर्थ ‘छिपना’ और (अन्तःमनसि हितं-दया यस्य सः) जिसके हृदय में दया हो वह व्यक्ति भी होता है। पीछे “अनर्हिते भगवति”, “अन्तर्हिते” कह आये हैं। भगवान गोपीजनवल्लभ हैं। गोपांगनओं के प्रति बड़े कृपालु हैं। उनके हित के लिये ही वे अन्तर्हित हुए हैं, उन्हें सन्ताप पहुँचाने के लिये नहीं। क्योंकि वे निष्ठुर नहीं हैं। इसलिये “तासां सत्सौभगमदम” आदि पहले कहा। श्रीव्रजांगनाओं को यह गर्व था कि “श्रीश्यामसुन्दर हमारे परवश हैं-अधीन हैं, क्योंकि वे हमारी वेणी सुलझाते हैं, पादचित्त की उन्नति का नाम ‘मान’ और उसकी गाढ़ता ‘मद’ है। ‘रासलीला’ परम रसमयी है। थोड़ा भी गर्व उसमें बाधक होगा। अतः श्रीश्यामसुन्दर प्रभु उसे दूर करके पूर्ण विशुद्ध रसास्वाद कराने के लिये और ‘प्रसादाय’ (गोपियों की प्रसन्नता के लिये) स्ववश करने के लिये अन्तर्हित हुए, छिपे तथा च मन में हित है। अथवा ‘अन्तः’ पंचम्यन्त अव्यय है। उसका अर्थ हुआ (हृदयात्) हृदय से अर्थात व्रजदेवियों के हृदय से विच्छेदहेतुक गर्व के निवारण करने के लिये भगवान परमोपकारक बने, अन्तर्हित हुए। श्रीमद्वल्लभाचार्य जी कहते हैं- “तासां तत् सौभगमदं वीक्ष्यमानंच” इसमें ‘मद’ का अर्थ पूर्णता है, जिसका आशय हुआ गोपांगनाओं को अपनी पूर्णता का, अपने सौभाग्य के उत्कर्ष का अनुसन्धान हुआ। यदि ऐसा हो तो इसमें कोई आपत्ति नहीं, क्योंकि उनके जैसी कृष्ण ग्रहगृहीतात्माओं को उन्हें अपने सौभाग्य के उत्कर्ष का अनुसन्धान हो तो जिस अवस्था में वे हैं, उसमें जाकर होना ही चाहिये। यह बहुत दुर्लभ है। फिर भगवान की पूर्ण कृपा से ही तो यह हुआ है। ऐसी स्थिति में इसका अपनोदन क्यों हो? इस पर वे कहते हैं- जो मान हुआ वह असामयिक है, वह रस-विच्छेदक होगा। अतः उसे दूर करने के लिये भगवान अन्तर्हित हुए। फिर भी अन्तर्हित न होना चाहये, क्योंकि मानवती का मान मनाकर अपनोदन करना ही रसमर्यादा है। इस पर कहते हैं- मान आन्तर वस्तु है, बहिरंग नहीं। अतः उनका अपनोदन अन्तर्निहित होकर ही हो सकता है, अत: भगवान अन्तर्हित हुए। उन्होंने लीलाविशेष से विशिष्ट होकर अन्तर्हितता के साथ मानापनोद किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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