भक्ति सुधा -करपात्री महाराज पृ. 1108

भक्ति सुधा -करपात्री महाराज

श्रीरासलीलारहस्य

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एक व्यक्ति कुछ काल मौन रहता है। इससे वागिन्द्रिय अवश्य मन्द पड़ जाती है। वह अधिक बोल नहीं सकता। परन्तु वह जो कुछ कहता है वही हो जाता है। यदि वह वट वृक्ष को नीम का वृक्ष बतला दे तो उसे निम्बवृक्ष हो जाना पड़ता है। योग दर्शन में मौन से वाक्‌सिद्धि मानी गयी है। इसी प्रकार जो बालब्रह्मचारी है वह एकाएकी कामाहत नहीं होता। अत्यन्त रूपवती स्त्रियों को देखकर भी उसका चित्त विचलित नहीं होता। एक बार महर्षि नारद तप कर रहे थे। उन्हें तपोभ्रष्ट करने के लिये इन्द्र ने कुछ अप्सराएँ भेजीं। परन्तु उनके सारे हाव-भाव कटाक्ष उन्हें विचलित करने में समर्थ न हो सके। करते कैसे! इस समय श्रीनारद जी की मनोवृत्ति एकमात्र भगवत्तत्त्व में ही स्थित थी, उसे तो उनका भान भी नहीं हुआ। इस समय भगवान की उन पर पूर्ण कृपा थी। भला जिनके ऊपर भगवान की कृपा है उनका कोई क्या बिगाड़ सकता है?

“सीम कि चाप सकहि कोउ तासू।
बड़ रखवार रमापति जासू।।”

भगवान कृष्ण ने भी उद्धव को यही उपदेश किया है कि हे उद्धव! ये इन्द्रियाँ मनुष्य को ठगने वाली हैं। ये उसे असदभिनिवेश में ग्रस्त कर देती हैं; अतः तुम इनसे विषय सेवन मत करो।

“तस्मादुद्धव मा भुङ्क्ष्व विषयानसदिन्द्रियैः।
आत्माग्रहणनिर्भातं पश्य वैकल्पिकं भ्रमम्।।”

भगवान शंकराचार्य जी ने भी यही कहा है कि शम, दम, उपरति, तितिक्षा आदि साधनों से सम्पन्न होकर ही ब्रह्मविचार करना चाहिये। यदि इन्द्रियों को स्वाधीन न किया जायगा तो वेदान्त-चर्चा केवल तोते की कहानी हो होगी।[1] उससे तुम्हारा कल्याण नहीं हो सकता।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. एक बार एक व्यक्ति को यह देखकर बड़ी करुणा हुई कि बेचारे निरीह तोते व्यर्थ मनुष्यों के चंगुल में फँसते हैं। इसलिये उसने सोचा कि इन्हें कोई ऐसा पाठ पढ़ा दिया जाय जिससे ये उसमें न फँसें। उसने एक तोते को यह बात सिखला दी- ‘तोते! सावधान रहना। नली के ऊपर मत बैठना और अगर बैठ जाओ तो उसे छोड़ देना। उसे तुम्हीं ने पकड़ रखा है, उसने तुम्हें नहीं पकड़ा।’ उस तोते से सुनकर यह पाठ उस प्रान्त के सब तोतों ने सीख लिया। सब इसी प्रकार कहने लगे। परन्तु उस व्यक्ति ने देखा कि एक तोता नली में फँसा हुआ है और मुँह से यही बात कर रहा है। यही दशा साधनहीन वेदान्तियों की होती है। वे मुख से तो अपने को शुद्ध बुद्ध मुक्त कहते रहते हैं किन्तु वस्तुतः रहते विषयों में आसक्त ही हैं। इस प्रकार के ज्ञान से कोई लाभ नहीं हो सकता।

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क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
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4. मानसी-आराधना 20
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6. संकल्पबल 28
7. श्री शिवतत्व 48
8. शिव से शिक्षा 60
9. शिवलिंगोपासना-रहस्य 63
10. श्री विष्णु-तत्त्व 88
11. गायत्री-तत्त्व 97
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13. बुद्धावतार का प्रयोजन 178
14. गजेन्द्र-मुक्ति 182
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37. श्री रामभद्र का ध्यान 415
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40. विभीषण-शरणागति 450
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