भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
श्रीरासलीलारहस्य
ऐसा कर्म करने के लिये तो भगवान स्वयं आज्ञा दे रहे हैं-
कर्मजड़ तो वे हैं जो ऐहिकामुष्मिक भोगों को ही परमपुरुषार्थ मानकर उन्हीं-की प्राप्ति के लिये सारे कर्म-धर्म करते हैं। उनके विषय में भगवान कहते हैं-
वे लोग वेद के अर्थवाद में ही आसक्त रहते हैं। वे ही श्रुतियों का ब्रह्मपरत्व सुनकर घबराते हैं। वे अभय में भय देखते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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