भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
श्रीरासलीलारहस्य
श्रुति कहती है- ‘सोऽरोदीद्यद्रोदीत्तद्रुदस्य रुद्रत्वं तस्य यदश्रु व्यश्शीर्यत्तद्रजतम्’ अर्थात् ‘वह रोया, यही रुद्र का रुद्रत्व है, उसका जो आँसू गिरा वह चाँदी हो गया (इसलिये जो चाँदी देता है उसे रोना पड़ता है।)’ यह इसका आपाततः प्रतीयमान अर्थ है। किन्तु इसका तात्पर्य यही है कि बर्हियाग में चाँदी का दान नहीं करना चाहिये, जैसा कि श्रुति कहती है- ‘बर्हिषि रजतं न देयम्’ इत्यादि। सृष्टि-प्रतिपादक वाक्यों का सृष्टि-प्रतिपादनपरत्व तो आपाततः प्रतीत होता है; परन्तु यह बात कि उनका तात्पर्य सृष्टि में न होकर निखिल प्रपंच की परब्रह्मरूपता प्रतिपादन करने में है विशेष ऊहापोह करने पर ही ज्ञात होती है। इसके लिये हमें तर्क का आश्रय लेना पड़ेगा। ‘फलवत्सन्निधावफलं तदंग’ फलवान् के समीप में रहने वाला निष्फल उसी का अंग हुआ करता है। ब्रह्मबोधक वाक्य मुक्ति फल से युक्त है, सृष्टि-वाक्य में कोई फल श्रुत नहीं है। अतः सृष्टि वाक्य ब्रह्मबोधक वाक्य का अंग होकर ब्रह्मबोधन में ही अपना तात्पर्य रखता है। जिस प्रकार मृत्तिका से उत्पन्न हुआ घट घटोत्पत्ति से पूर्व, घटध्वंस के पश्चात् और इस समय भी केवल मृत्तिका ही है उसी प्रकार ब्रह्म से उत्पन्न और उसी में स्थित और लीन होने वाला जगत ब्रह्म ही है। वस्तुतः जगत ब्रह्म से उत्पन्न नहीं हुआ। यदि ब्रह्म से जगत की उत्पत्ति मानी जाय तो ब्रह्म का सावयवत्व, विकारित्व और सुख-दुःखात्मकत्व सिद्ध होगा; क्योंकि यह नियम है कि कार्य में कारण के ही गुण रहा करते हैं, अतः प्रपंच में जो गुण दिखाई देते हैं वे उसके कारण ब्रह्म में भी होने चाहिये। इसलिये, जिस प्रकार ‘विषं भुङ्क्ष्व’ इस वाक्य का आपाततः प्रतीयमान अर्थ छोड़कर इसका तात्पर्य शत्रु के घर का अन्न छोड़ने में माना गया उसी प्रकार हमें सृष्टि-प्रतिपादक वाक्यों का सीधा-सादा अर्थ छोड़कर ब्रह्म में ही तात्पर्य मानना पड़ेगा। अतः हे श्रुतियों! तुम इधर परब्रह्म के प्रतिपादन का प्रयत्न क्यों करती हो? जाओ साध्यसाधनरूप प्रपंच का ही प्रतिपादन करो। इसमें विशेष आयास भी नहीं है। देखो, ‘कदाचनस्तरीरसि नेन्द्र सश्चसि दाशुषे’ यह श्रुति स्पष्टतया इन्द्र का ही प्रतिपादन करती है; इसी प्रकार कोई श्रुति पुरोडाश की स्तुति करती है; जैसे- ‘स्योनं ते सदनं कृणोमि घृतस्य धारया सुशेवं कल्पयामि, तस्मिन् सीद अमृते प्रतितिष्ठ व्रीहीणां मेध सुमनस्यमानः’। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज