भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
श्रीरासलीलारहस्य
मान लीजिये आपको कहीं जाना है। अपने ध्रुव की ओर जाते-जाते आगे चलने पर आपको चार मार्ग मिले। उस समय चारों मार्गों से यात्री आ-जा रहे हैं। आप उनसे पूछते हैं कि अमुक स्थान को कौन मार्ग जाता है, तो वे सभी अपने-अपने मार्ग को वहाँ जाने वाला और अधिक सुविधाजनक बतलाते हैं। वे अपने-अपने मार्ग की प्रशंसा करते हैं; इतना ही नहीं अपितु अपने से भिन्न मार्गों को विघ्नबहुल और त्याज्य भी बतलाते हैं। ऐसी अवस्था में आप क्या करेंगे? हमारे विचार से तो आप यही देखेंगे कि इनमें कोई हमारा परिचित (आप्त पुरुष) भी है। तब उनमें जो आपके ग्राम के आसपास का होगा, औरों की अपेक्षा उसी का विश्वास करोगे। अतः विचार वानों का यही कर्तव्य है कि आप्त वाक्य का अवलम्बन करें। यह साधारण धर्म कहा जाता है कि जो आचार-विचार अपनी कुल परम्परा से चला आया हो उसी का आश्रय लिया जाय। आप जिस देश, जाति, सम्प्रदाय या कुल में उत्पन्न हुए हैं उसमें जो पुरुष या शास्त्र अधिक आदरणीय माने गये हों उन्हीं के मार्ग का अवलम्बन करें, क्योंकि पिता अपने पुत्र का अहित कभी नहीं चाह सकता। अतः पिता प्रपितामह क्रम से जो मार्ग चला आया हो उसी का आश्रय लेना चाहिये। धर्म के विषय में यह व्यापक लक्षण है। यह जैसा हिन्दुओं के लिये है वैसा ही ईसाई, मुसलमान, जैन, बौद्ध आदि अन्य मतावलम्बियों के लिये भी है। उन्हें भी अपने-अपने आचार्य और धर्मग्रन्थों का आश्रय लेना चाहिये। यदि आप आरम्भ से ही यह निश्चय करने लगेंगे कि कौन मार्ग श्रेष्ठ है तो इसका निर्णय कभी नहीं कर सकेंगे। यह तो बहुत लम्बा-चौड़ा क्रम है, इसका निर्णय तो कभी नहीं होगा। ऐसी अवस्था में आप धर्म मार्ग का अवलम्बन कैसे कर सकेंगे? राजा को सारी शक्तियाँ प्राप्त होती हैं; वह चाहे जिसे उजाड़ सकता है और चाहे जिसे बसा सकता है; उसे कोई रोकने वाला नहीं होता। फिर भी वह अपने ही बनाये हुए नियमों का अनुसरण करता है। वस्तुतः बिना नियम के कोई भी व्यवस्था हो नहीं सकती। इस प्रकार की नियम-श्रृंखला का नाम ही तो धर्म है। लौकिक श्रृंखला से बद्ध प्रवृत्ति का नाम लौकिक व्यवहार है और वैदिक श्रृंखला से बद्ध प्रवृत्ति का नाम धर्म है। किन्तु नियम-निर्माण का कार्य अभिज्ञ पुरुष ही कर सकते हैं; अतः यहाँ फिर हमारा वही लक्षण लागू हो जात है कि जो जिस धर्म, जिस जाति और जिस कुल में उत्पन्न हुए हैं उन्हें उसी में उत्पन्न हुए आप्त पुरुषों के मार्ग का अवलम्बन करना चाहिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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