भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
श्रीरासलीलारहस्य
इसके सिवा और भी वह भजनानन्द चन्द्र कैसा है?- दीर्घ-दर्शन-दीर्घ आल्पबाध्यं दर्शनं यस्य’ अर्थात जिसका दर्शन-ज्ञान किसी से बाधित नहीं होता। जो ज्ञान भ्रमात्मक होता है वह तो ज्ञानान्तर से बाधित हो जाता है, किन्तु यह भजनानन्द चन्द्र ज्ञानान्तर से बाधित होने वाला नहीं है, यह ज्ञानान्तराबाध्य भजनानन्द चन्द्र चर्षणियों के शोक का मार्जन करता तथा प्राग्भवा तमोव्याप्ता बुद्धि के सत्त्वात्मक प्रधान भाग को अनुरागात्मक कुंकुम से लेपन करता हुआ उदित हुआ। जिस प्रकार कोई चिरप्रोषित प्रियतम प्रवास से लौटकर अपनी प्रियतमा के शोकाश्रुओं का मार्जन करते हुए कुंकुम से उसके मुख का लेपन करता है। अथवा यों समझिये कि जिस समय भगवान ने रमण करने की इच्छा की उसी समय प्राची-नित्यप्रिया श्रीवृषभानुनन्दिनी का मुख विलेपन करते हुए उडुराज (श्रीकृष्णचन्द्र) उस विहार स्थल में उदित हो गये। यहाँ ‘उडुराज’ शब्द में उपमालंकार है अर्थात श्रीकृष्णरूप चन्द्र जो कि चन्द्रमा के समान चन्द्रमा हैं वे प्रियतमा श्रीराधिका जी का मुखविलिम्पन करते हुए उस विहारस्थल में इसी प्रकार प्रकट हुए जैसे चन्द्रमा प्राची दिशा को अनुरक्षित करते हुए उदित होते हैं। उडुराज जिस प्रकार प्राची दिशा के मुख यानी प्रधान भाग को करों (किरणों) से अनुरंजित करते हैं उसी प्रकार यहाँ क्रीड़ाभूमि में श्रीकृष्णचन्द्र करकमलों में ली हुई होलिका-रोलिका (होली के गुलाल) से श्रीराधिका जी का मुखमण्डल अनुरंजित करते हैं। जिस प्रकार उदयकालीन चन्द्रमा उदयराग से प्राची दिशा और समस्त आकाश को अरुण कर देता है ठीक उसी प्रकार भगवान कृष्ण ने प्रकट होकर अपने शन्तम-कर अर्थात मंगलमय कर-व्यापारों से समस्त व्रजांगनाओं के मुखमण्डल को अरुण कर दिया। यहाँ ‘शन्तमैः करैः’ यह भगवान के समस्त मंगलमय अंगों का उपलक्षण है। वे अंग मंगलमय हैं और मंगलकारक भी हैं, क्योंकि भगवान ‘आनन्दमात्रकरपादमुखोदरादि’ तथा-
आदि वाक्यों के अनुसार शुद्ध सन्मात्र, चिन्मात्र और आनन्दमात्र तत्त्व हैं; तथा ‘एष ह्येवानन्दयति’ इस श्रुति के अनुसार वे ही सब प्राणियों को आनन्दित भी करते हैं, अतः वे आनंदप्रद भी हैं। उन्होंने नित्यप्रिया श्रीवृषभानुनंदिनी के समान अन्य व्रजांगनाओं के मुखमण्डल को भी सुखमय और सुखावह कर-व्यापारों से अरुण किया तथा उनके कर्णरन्ध्रों को वेणुराग से और हृदयाकाशों को प्रेमराग से रंजित कर दिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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