भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
इष्टदेव की उपासना
अर्थात ‘‘ हे नारायण! इस स्थावर-जंगमात्मक जगत में आपसे अन्य कुछ भी नहीं है। मित्रों में भार्या, सब बन्धुओ में परम हितैषी धर्म आप ही हैं। माता, पिता, सुहृत, धन, सौख्य, सम्पत्ति, और तो क्या प्राणेश्वर आप ही हैं। कथा वही है जिसमें आपका नाम हो मन वही है जो आप में अर्पित हो, काम वहीं है जो आपके लिए ही किया जाय और वही तपस्या है, जिसमें आपका स्मरण होता रहे। प्रणियों के उस महामोह को, उस प्रमादिता को देखकर बड़ा ही खेद और आश्चर्य होता है, जिससे आपका अनादर करके अन्य विषयों में महान परिश्रम करते हैं। हे भगवान! आपसे श्रेष्ठ ऐसा अन्य कोई न धर्म] है, न अर्थ, न काम और न मोक्ष ही। भगवान वासुदेव का स्मरण न होना ही परम हानि, परम उपद्रव, परम दौर्भाग्य है। परमानन्दकन्द मधुसूदन भगवान गोविन्द को छोड़कर मैं न तो अन्य किसी को जानता ही हूँ, न स्मरण करता हूँ, न भजता हूँ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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