भक्ति पंथ कौं जो अनुसरै। सो अष्टांग जोग कौं करै।
यम, नियमासन, प्रानायान। करि अभ्यास होइ निष्काम।
प्रत्याहार-धारना-ध्यान। करै जु छाँड़ि वासना आन।
क्रम क्रम सौं पुनि। करै समाधि। सूर स्याम भजि मिटै उपाधि।।21।।
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