भक्ति पंथ कौं जो अनुसरै -सूरदास

सूरसागर

द्वितीय स्कन्ध

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राग बिलाबल



भक्ति पंथ कौं जो अनुसरै। सो अष्‍टांग जोग कौं करै।
यम, नियमासन, प्रानायान। करि अभ्‍यास होइ निष्‍काम।
प्रत्‍याहार-धारना-ध्‍यान। करै जु छाँड़ि वासना आन।
क्रम क्रम सौं पुनि। करै समाधि। सूर स्‍याम भजि मिटै उपाधि।।21।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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