भक्ति कब करिहौ, जनम सिरानौ।
बालापन खेलतहीं खोयौ, तरुनाई गरबानौ।
बहुत प्रपंच किए माया के, तऊ अधम अधानौ।
जतन-जतन करि माया जोरी, लै गयौ रंक न रानौ।
सुत-बित-बनिता-प्रीति लगाई, झूठे भरम भुलानौ।
लोभ्-मोह ते चेत्यौ नाहीं, सुपनैं ज्यौं डहकानौ।
बिरध भऐं कफ कंठ बिरौध्यौ, सिर धुनि-धुनि पछितानौ।
सूरदास भगवंत-भजन बिनु, जम कें हाथ बिकानौ।।329।।