भक्तबछल श्रीजादवराइ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग रामकली


भक्तबछल श्रीजादवराइ।
गेह कूवरी कै पग धारे, जाति पाँति बिसराइ।।
पूरन भाग मानि तिन अपने, चरन गहे उठि धाइ।
सुरति रही नहिं देह गेह की, आनँद उर न समाइ।।
प्रभु गहि बाहँ पास बैठारी, सो सुख कह्यौ न जाइ।
'सूरदास' प्रभु सदा भक्त बस, रंक गनतन हि राइ।।3102।।

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