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ब्रह्म वैवर्त पुराण
श्रीकृष्ण जन्म खण्ड (उत्तरार्द्ध): अध्याय 70
कभी उन्हें अपने हाथों में श्वेत धान्य और श्वेत पुष्प दिखायी दिया तथा कभी उन्होंने अपने-आपको चंदन से चर्चित देखा। कभी अपने-आपको अट्टालिका पर और कभी समुद्र में देखा। शरीर में रक्त लगा है; अंग-अंग छिन्न-भिन्न एवं क्षत-विक्षत हो रहा है और उसमें मेद तथा पीब लिपटे हुए हैं- यह बात देखने में आयी। तदनन्तर चाँदी, सोना, उज्ज्वल मणिरत्न, मुक्ता, माणिक्य, भरे हुए कलश का जल, बछड़ा सहित गौ, साँड़, मोर, तोता, सारस, हंस, चील, खंजरीट, ताम्बूल, पुष्पमाला, प्रज्वलित अग्न, देवपूजा, पार्वती की प्रतिमा, श्रीकृष्ण की प्रतिमा, शिवलिंग, ब्राह्मण बालिका, सामान्य बालिका, फली और पकी हुई खेती, देवस्थान, सिंह, बाघ, गुरु और देवता के दर्शन हुए। ऐसा स्वप्न देख प्रातःकाल उठकर उन्होंने इच्छानुसार आह्निक कृत्यों का संपादन किया। इसके बाद उद्धव से स्वप्न का सारा वृत्तान्त कहा और उनकी आज्ञा ले गुरु एवं देवता की पूजा करके मन ही मन श्रीकृष्ण का ध्यान करते हुए वहाँ से यात्रा की। नारद! रास्ते में भी उन्हें ऐसे ही मंगलयोग्य, शुभदायक, मनोवाञ्छिक फल देने वाले, रमणीय तथा मंगलसूचक शकुन अपने सामने दृष्टिगोचर हुए। बायीं तरफ उन्हें मुर्दा, सियारिन, भरा घड़ा, नेवला, नीलकण्ठ, दिव्याभूषणों से विभूषित पति-पुत्रवती साध्वी स्त्री, श्वेत पुष्प, श्वेत माला, श्वेत धान्य तथा खञ्जरीट के शुभ दर्शन हुए। दाहिनी और उन्होंने जलती आग, ब्राह्मण, वृषभ, हाथी, बछड़े सहित गाय, श्वेत अश्व, राजहंस, वेश्या, पुष्पमाला, पताका, दही, खीर, मणि, सुवर्ण, चाँदी, मुक्ता, माणिक्य, तुरंत का कटा हुआ मांस, चंदन, मधु, घी, कृष्णसार मृग, फल, लावा, सरसों, दर्पण, विचित्र विमान, सुंदर दीप्तिमती प्रतिमा, श्वेत कमल, कमलवन, शंख, चील, चकोर, बिलाव, पर्वत, बादल, मोर, तोता और सारस के दर्शन किये तथा शंख, कोयल एवं वाद्यों की मंगलमयी ध्वनि सुनी। श्रीकृष्ण महिमा के विचित्र गान, हरि कीर्तन और जय-जयकार के शब्द भी उनके कानों में पड़े। ऐसे शुभ-शकुन देख सुनकर अक्रूर का हृदय हर्ष से खिल उठा। उन्होंने श्रीहरि का स्मरण करके पुण्यमय वृन्दावन में प्रवेश किया। सामने देखा-रमणीय रासमण्डल शोभा पाता है, जो मन को अभीष्ट है। चंदन, अगुरु, कस्तूरी, पुष्प तथा चंदन का स्पर्श करके बहने वाली वायु उस स्थान को सुवासित कर रही है। केले के खम्भे तथा मंगल कलश रासमण्डल की शोभा बढ़ा रहे हैं। रेशमी सूत में गुँथे हुए आम्रपल्लवों की सुंदर बन्दनवारें भी इस रम्य प्रदेश की श्री वृद्धि कर रही हैं। सारा शोभनीय रासमण्डल सब ओर से पद्मरागमणि द्वारा निर्मित है तथा तीन करोड़ रत्नमय मंदिर एवं लाखों रमणीय कुञ्ज कुटीर उसकी शोभा बढ़ाते हैं। रासमण्डल तथा वृन्दावन की शोभा देखकर जब अक्रूर कुछ दूर आगे गये तो उन्हें अपने समक्ष नन्दराय जी का परम उत्तम सुरम्य व्रज दिखायी दिया, जो विष्णु के निवास स्थान वैकुण्ठधाम के समान सुशोभित था। उसमें रत्नों की सीढ़ियाँ लगी थीं। रत्नों के बने हुए खम्भों से वह बड़ा दीप्तिमान दिखायी देता था। भाँति-भाँति के विचित्र चित्र उसका सौंदर्य बढ़ा रहे थे। श्रेष्ठ रत्नों के मण्डलाकार घेरे से वह घिरा हुआ था। विश्वकर्मा द्वारा रचित वह नन्दभवन मणियों के सारभाग से खचित (जड़ा हुआ) था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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