ब्रह्म वैवर्त पुराण
गणपतिखण्ड: अध्याय 34
सुव्रते! साथ ही मैं यह निश्चित रूप से जानता हूँ कि मैं उनका वध्य हूँ। तब भला, भविष्य की सारी बातें जानकर भी मैं उनकी शरण में कैसे जा सकता हूँ? क्योंकि प्रतिष्ठित पुरुषों की अपकीर्ति मृत्यु से भी बढ़कर दुःखदायिनी होती है। इतना कहकर सम्राट कार्तवीर्य ने समरभूमि में जाने के लिए उद्यत हो बाजा बजवाया और मांगलिक कार्य सम्पन्न करवाये। वह असंख्य राजाओं को, तीन लाख राजाधिराजों को, महान बल-पराक्रम से सम्पन्न एक सौ अक्षौहिणी सेनाओं को तथा असंख्यों घोड़े, हाथी, पैदल सिपाही और रथों को साथ लेकर रण-यात्रा के लिये तैयार हुआ। उसे कवच और बाणसहित अक्षय धनुष धारण करके यात्रा के लिये समुत्सुक देख साध्वी मनोरमा स्तब्ध हो गयी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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