ब्रह्म वैवर्त पुराण
गणपतिखण्ड: अध्याय 32
विद्वान को चाहिये कि वह गोप और गोपियों के समुदाय, मुझ शान्तस्वरूप महादेव, ब्रह्मा, पार्वती, लक्ष्मी, सरस्वती, पृथ्वी, विग्रहधारी सम्पूर्ण देवता और देवषट्क की पंचोपचार द्वारा सम्यक-पूजा करे। तत्पश्चात इसी क्रम से श्रीकृष्ण का पूजन करे। फिर गणेश, सूर्य, अग्नि, विष्णु, शिव और पार्वती– इन छः देवों की भलीभाँति अर्चना करके इष्टदेव की पूजा करे। विघ्ननाश के लिये गणेश का, व्याधिनाश के लिये सूर्य का, आत्मशुद्धि के लिये अग्नि का, मुक्ति के लिये श्रीविष्णु का, ज्ञान के लिये शंकर का और परमैश्वर्य की प्राप्ति के लिये दुर्गा का पूजन करने पर यह फल मिलता है। यदि इनका पूजन न किया जाए तो विपरीत फल प्राप्त होता है। तदनन्तर भक्तिभाव सहित इष्टदेव का परिहार करके भक्तिपूर्वक सामवेदोक्त स्तोत्र का पाठ करना चाहिये। (वह स्तोत्र बतलाता हूँ) उसे श्रवण करो। महादेव जी ने कहा– जो परब्रह्मा, परम धाम, परम ज्योति, सनातन, निर्लिप्त और सबके कारण हैं, उन परमात्मा को मैं नमस्कार करता हूँ। जो स्थूल से स्थूलतम, सूक्ष्म से सूक्ष्मतम, सबके देखने योग्य, अदृश्य और स्वेच्छाचारी हैं, उन उत्कृष्ट देव को मैं प्रणाम करता हूँ। जो साकार, निराकार, सगुण, निर्गुण, सबके आधार, सर्वस्वरूप और स्वेच्छानुसार रूप धारण करने वाले हैं; उन प्रभु को मेरा अभिवादन है। जिनका रूप अत्यन्त सुन्दर है, जो उपमारहित हैं और अत्यन्त कराल रूप धारण करते हैं; उन सर्वव्यापी भगवान को मैं सिर झुकाता हूँ। जो कर्म के कर्मरूप, समस्त कर्मों के साक्षी, फल और फलदाता हैं; उन सर्वरूप को मेरा नमस्कार है। जो पुरुष अपनी कला से विभिन्न मूर्ति धारण करके सृष्टि रचयिता, पालक और संहारक हैं तथा जो कलांश से नाना प्रकार की मूर्ति धारण करते हैं; उनके चरणों में मैं प्रणिपात करता हूँ। जो माया के वशीभूत होकर स्वयं प्रकृतिरूप हैं और स्वयं पुरुष हैं तथा स्वयं इन दोनों से परे हैं; उन परात्पर को मैं सदा नमस्कार करता हूँ। जो अपनी माया से स्त्री, पुरुष और नपुंसक का रूप धारण करते हैं तथा जो देव स्वयं माया और स्वयं मायेश्वर हैं; उन्हें मेरा प्रणाम है। जो सम्पूर्ण दुःखों से उबारने वाले, सभी कारणों के कारण और समस्त विश्वों को धारण करने वाले हैं, सबके कारणस्वरूप हैं; उन परमेश्वर को मैं प्रणाम करता हूँ। जो तेजस्वियों में सूर्य, सम्पूर्ण जातियों में ब्राह्मण और नक्षत्रों में चन्द्रमा हैं; उन जगदीश्वर को मेरा अभिवादन है। जो रुद्रों, वैष्णवों और ज्ञानियों में शंकर हैं तथा जो नागों में शेषनाग हैं; उन जगत्पति को मैं मस्तक झुकाता हूँ। जो प्रजापतियों में ब्रह्मा, सिद्धों में स्वयं कपिल और मुनियों में सनत्कुमार हैं; उन जगद्गुरु को मेरा प्रणाम स्वीकार हो। जो देवताओं में विष्णु, देवियों में स्वयं प्रकृति, मनुओं में स्वायम्भुव मनु, मनुष्यों में वैष्णव और नारियों में शतरूपा हैं; उन बहुरूपिये को मैं नमस्कार करता हूँ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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