ब्रह्म वैवर्त पुराण
गणपतिखण्ड: अध्याय 28
अब तीर्थ में मरने वाले ज्ञानियों तथा वैष्णवों के विषय में श्रवण करो। जो साध्वी नारी जहाँ-जहाँ अपने वैष्णव पति का अनुगमन करती है, वहाँ-वहाँ वह स्वामी के साथ वैकुण्ठ में जाकर श्रीहरि की संनिधि प्राप्त करती है। नारद! कृष्णभक्तिपरायण जीवन्मुक्त भक्तों के तीर्थ में अथवा अन्यत्र मरने में कोई विशेषता नहीं है; क्योंकि उन्हें दोनों जगह समान फल मिलता है। इसलिये यदि स्त्री अथवा पुरुष भगवान नारायण तथा कमलालया लक्ष्मी का भजन करे तो उस भजन के प्रभाव से महाप्रलय होने पर भी उन दोनों का नाश नहीं होता। वहाँ रेणुका से इतना कहकर भृगु मुनि परशुराम से समयोचित तथा वेद विहित वचन बोले। “महाभाग वत्स! यहाँ आओ और इस अमांगलिक शोक को त्याग दो। भृगुनन्दन! अपने पिता को दक्षिण सिर करके उत्तान कर दो, नया वस्त्र और यज्ञोपवीत पहनाओ और आँसू रोककर दक्षिणाभिमुख हो बैठ जाओ। फिर भक्तिपूर्वक अरणी से उत्पन्न हुई अग्नि हाथ में लो और पृथ्वी पर जो-जो तीर्थ हैं, उन सबका स्मरण करो। गया आदि तीर्थ, पुण्यमय पर्वत, कुरुक्षेत्र, सरिताओं में श्रेष्ठ गंगा, यमुना, कौशिकी, सम्पूर्ण पापों का विनाश करने वाली चन्द्रभागा, गण्डकी, काशी, पनसा, सरयू, पुण्पभद्रा, भद्रा, नर्मदा, सरस्वती, गोदावरी, कावेरी, स्वर्णरेखा, पुष्कर, रैवत, वराह, श्रीशैल, गन्धमादन, हिमालय, कैलास, सुमेरु, रत्नपर्वत, वाराणसी, प्रयाग, पुण्यमय वन वृन्दावन, हरिद्वार और बदरी– इनका बारंबार स्मरण करो। फिर चन्दन, अगरु, कस्तूरी और सुगन्धित पुष्प देकर और वस्त्र से आच्छादित करके पिता के शव को चिता के ऊपर स्थापित करो। तात! फिर सोने की सलाई से कान, आँख, नाक और मुख में निर्मन्थन करके उसे आदरसहित ब्राह्मण को दान कर दो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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