ब्रह्म वैवर्त पुराण
गणपतिखण्ड : अध्याय 23
श्री महालक्ष्मी ने कहा– विप्रवरो! मैं आप लोगों की आज्ञा से देवताओं के घर जाऊँगी, किंतु भारतवर्ष में जिन-जिन के घर नहीं जाऊँगी, उनका विवरण सुनिये। पुण्यात्मा गृहस्थों और उत्तम नीति के जानकार नरेशों के घर में तो मैं स्थिररूप से निवास करूँगी और पुत्र की भाँति उनकी रक्षा करूँगी। जिस-जिसके प्रति उसके गुरु, देवता, माता, पिता, भाई-बन्धु, अतिथि और पितर लोग रुष्ट हो जाएँगे, उसके घर मैं नहीं जाऊँगी। जो मिथ्यावादी, पराक्रमहीन और दुष्ट स्वभाव वाला है तथा ‘मेरे पास कुछ नहीं है’ यों सदा कहता रहता है, उसके घर मैं नहीं जाऊँगी। जो सत्यहीन, धरोहर हड़क लेने वाला, झूठी गवाही देने वाला, विश्वासघाती और कृतघ्न है, उसके गृह मैं नहीं जाऊँगी। जो चिन्ताग्रस्त, भयभीत, शत्रु के चंगुल में फँसा हुआ, महान पानी, कर्जदार और अत्यन्त कृपण है– ऐसे पापियों के घर मैं नहीं जाऊँगी। जो दीक्षाहीन, शोकार्त, मन्दबुद्धि और सदा स्त्री के वश में रहने वाला है तथा जो कुलटा स्त्री का पति अथवा पुत्र है, उसके घर मैं कभी नहीं जाऊँगी। जो दुष्ट वचन बोलने वाला और झगड़ालू है, जिसके घर में निरन्तर कलह होता रहता है तथा जिसके घर में स्त्री का स्वामित्व है– ऐसे लोगों के घर मैं नहीं जाऊँगी। जहाँ श्रीहरि की पूजा और उनके गुणों का कीर्तन नहीं होता तथा उनकी प्रशंसा में उत्सुकता नहीं है, उसके घर मैं नहीं जाऊँगी। जो कन्या, अन्न और वेद को बेचने वाला, मनुष्यघाती और हिंसक है, उसका घर नरककुण्ड के समान है; अतः मैं उसके घर नहीं जाऊँगी। जो कृपणतावश माता, पिता, भार्या, गुरुपत्नी, गुरु, पुत्र, अनाथ बहिन और आश्रयहीन बान्धवों का पालन-पोषण नहीं करता; सदा धन-संग्रह में ही लगा रहता है; उसके नरक-कुण्ड-सदृश घर में मैं नहीं जाऊँगी। जिसके दाँत और वस्त्र मलिन, मस्तक रूखा और ग्रास तथा हास विकृत रहते हैं, उसके घर मैं नहीं जाऊँगी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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