ब्रह्म वैवर्त पुराण
गणपतिखण्ड: अध्याय 16
वहाँ कैलास पर पहुँचकर वे अविनाशी वट-वृक्ष के नीचे कृत्तिकाओं तथा श्रेष्ठ पार्षदों के साथ कुछ देर के लिये ठहर गये। उस नगर के राजमार्ग बड़े मनोहर थे। उन पर चारों ओर पद्मराग और इन्द्रनीलमणि जड़ी हुई थी। समूह-के-समूह केले के खंभे गड़े थे, जिन पर रेशमी सूत में गुँथे हुए चन्दन के पल्लवों की बन्दनवार लटक रही थी। वह पूर्ण कुम्भों से सुशोभित था। उस पर चन्दन मिश्रित जल का छिड़काव किया गया था। असंख्यों रत्नप्रदीपों तथा मणियों से उसकी विशेष शोभा हो रही थी। वह सदा उत्सवों से व्याप्त, हाथों में दूब और पुष्प लिये हुए वन्दियों और ब्राह्मणों से युक्त तथा पति-पुत्रवती साध्वी नारियों से समन्वित था। समस्त मंगल-कार्य करके पार्वती देवी लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा, सावित्री, तुलसी, रति, अरुन्धती, अहल्या, दिति, सुन्दरी तारा, अदिति, शतरूपा, शची, संध्या, रोहिणी, अनसूया, स्वाहा, संज्ञा, वरुण-पत्नी, आकूति, प्रसूति, देवहूति, मेनका, रंग तथा एक एक प्रकृति वाली मैनाक-पत्नी, वसुन्धरा और मनसादेवी को आगे करके वहाँ आयीं। तदनन्तर देवगण, मुनिसमुदाय, पर्वत, गन्धर्व तथा किन्नर सब-के-सब आनन्दमग्न हो कुमार के स्वागत में गये। महेश्वर भी नाना प्रकार के बाजों, रुद्रगणों, पार्षदों, भैरवों तथा क्षेत्रपालों के साथ वहाँ पधारे। तत्पश्चात शक्तिधारी कार्तिकेय पार्वती को निकट देखकर हर्षगद्गद हो गये। उस समय वे तुरंत ही रथ से उतर पड़े और सिर झुकाकर उन्हें प्रणाम करने लगे। तब पार्वती ने कार्तिकेय को देखकर लक्ष्मी आदि देवियों, मुनि-पत्नियों और शिव आदि सभी से यत्नपूर्वक परम भक्ति के साथ सम्भाषण किया और उन्हें अपनी गोद में उठाकर वे चूमने लगीं। फिर शंकर, देवगण, पर्वत, शैलपत्नियों, पार्वती आदि देवियों तथा सभी मुनियों ने कार्तिकेय को शुभाशीर्वाद दिया। तदनन्तर कुमार गणों के साथ शिव-भवन में आये। वहाँ सभा के मध्य में उन्होंने क्षीरसागर में शयन करने वाले भगवान विष्णु को देखा। वे रत्नभरणों से विभूषित हो रत्नसिंहासन पर विराजमान थे। धर्म, ब्रह्मा, इन्द्र, चन्द्रमा, सूर्य, अग्नि, वायु आदि देवता उन्हें घेरे हुए थे। उनका मुख प्रसन्न था उस पर थोड़ी-थोड़ी मुस्कान की छटा छा रही थी। वे भक्तों पर अनुग्रह करने के लिये कातर हो रहे थे। उन पर श्वेत चँवर डुलाया जा रहा था और देवेन्द्र तथा मुनीन्द्र उनका स्तवन कर रहे थे। उन जगन्नाथ को देखकर कार्तिकेय के सर्वांग में रोमांच हो आया। उन्होंने भक्तिभावपूर्वक सिर झुकाकर उन्हें प्रणाम किया। इसके बाद ब्रह्मा, धर्म, देवताओं और हर्षित मुनिवरों में प्रत्येक को प्रणाम किया और उनका शुभाशीर्वाद पाया। फिर बारी-बारी से सबसे कुशल-समाचार पूछकर वे एक रत्नसिंहासन पर बैठे। उस समय पार्वती सहित शंकर ने ब्राह्मणों को बहुत-सा धन दान दिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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