ब्रह्म वैवर्त पुराण
गणपतिखण्ड: अध्याय 14-15
जो सनातनी विष्णुमाया सबकी आदि, सर्वस्व प्रदान करने वाली और विश्व का मंगल करने वाली हैं, उन्हीं जगज्जननी ने इस समय भारतवर्ष में शैलराज की पत्नी के गर्भ से जन्म धारण किया है और दारुण तपस्या करके शंकर को पतिरूप में प्राप्त किया है। ब्रह्मा से लेकर तृणपर्यन्त सारी सृष्टि कृत्रिम है, अतएव मिथ्या ही है। सभी श्रीकृष्ण से उत्पन्न हुए हैं और समय आने पर केवल श्रीकृष्ण में ही विलीन हो जाते हैं। प्रत्येक कल्प में सृष्टि के विधान में मैं नित्य होते हुए भी माया से आबद्ध होकर जन्म-धारण करता हूँ, उस समय प्रत्येक जन्म में जगज्जननी पार्वती मेरी माता होती हैं। जगत में जितनी नारियाँ हैं, वे सभी प्रकृति से उत्पन्न हुई हैं। उनमें से कुछ प्रकृति की अंशभूता हैं तो कुछ कलात्मिका तथा कुछ कलांश के अंश से प्रकट हुई हैं। ये ज्ञानसम्पन्ना योगिनी कृत्तिकाएँ प्रकृति की कलाएँ हैं। इन्होंने निरन्तर अपने स्तन के दूध तथा उपहार से मेरा पालन-पोषण किया है। अतः मैं उनका पोष्य पुत्र हूँ और पोषण करने के कारण ये मेरी माताएँ हैं। साथ ही मैं उनक प्रकृतिदेवी (पार्वती) का भी पुत्र हूँ; क्योंकि तुम्हारे स्वामी शंकर जी के वीर्य से उत्पन्न हूँ। नन्दिकेश्वर! मैं गिरिराजनन्दिनी के गर्भ से उत्पन्न नहीं हुआ हूँ, अतः जैसे वे मेरी धर्ममाता हैं, वैसे ही ये कृत्तिकाएँ भी सर्वसम्मति से मेरी धर्म-माताएँ हैं; क्योंकि स्तन पिलाने वाली (धाय), गर्भ में धारण करने वाली (जननी), भोजन देने वाली (पाचिका), गुरुपत्नी, अभीष्ट देवता की पत्नी, पिता की पत्नी (सौतेली माता), कन्या, बहिन, पुत्रवधू, पत्नी की माता (सास), माता की माता (नानी), पिता की माता (दादी), सहोदर भाई की पत्नी, माता की बहिन (मौसी), पिता की बहिन (बूआ) तथा मामी– ये सोलह मनुष्यों की वेद विहित माताएँ कहलाती हैं।[1] ये कृत्तिकाएँ सम्पूर्ण सिद्धियों की ज्ञाता, परमैश्वर्यसम्पन्न और तीनों लोकों में पूजित हैं। ये क्षुद्र नहीं है, बल्कि ब्रह्मा की कन्याएँ हैं। तुम भी सत्त्वसम्पन्न तथा शम्भु के पुत्र के समान हो और विष्णु ने तुम्हें भेजा है; अतः चलो, मैं तुम्हारे साथ चलता हूँ। वहाँ देवसमुदाय का दर्शन करूँगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ स्तनदात्री गर्भधात्री भक्ष्यदात्री गुरुप्रिया। अभीष्टदेवपत्नी च पितुः पत्नी च कन्यका।।
सगर्भकन्याभगिनी पुत्रपत्नी प्रियाप्रसूः। मातुर्माता पितुर्माता सोदरस्य प्रिया तथा।।
मातुः पितुश्च भगिनी मातुलानी तथैव च। जनानां वेदविहिता मातरः षोडश स्मृताः।।-(15। 38-40)
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