ब्रह्म वैवर्त पुराण
गणपतिखण्ड: अध्याय 14-15
जब उस सभा में उन सब लोगों ने प्रसन्न मन से श्रीहरि से यों कहा, तब उनके उस कथन को सुनकर मधुसूदन संतुष्ट हो गये। पुत्र का पूरा समाचार पाकर पार्वती मन हर्ष से खिल उठा। उन्होंने ब्राह्मणों को करोड़ों रत्न, बहुत-सा धन और विभिन्न प्रकार के सभी वस्त्र दिये। तत्पश्चात लक्ष्मी, सरस्वती, सावित्री, मेना आदि सभी महिलाओं ने तथा विष्णु आदि सभी देवताओं ने ब्राह्मणों को धन दिया। श्रीनारायण कहते हैं– मुने! पुत्र का समाचार मिल जाने पर जब विष्णु, देवगण, मुनिसमुदाय और पार्वती ने पार्वती सहित शंकर को प्रेरित किया, तब उन्होंने लाखों क्षेत्रपाल, भूत, बेताल, यक्ष, कूष्माण्ड, ब्रह्मराक्षस, डाकिनी, योगिनी और भैरवों के साथ महान बल-पराक्रम सम्पन्न वीरभद्र, विशालाक्ष, शंकुकर्ण, कबन्ध, नन्दीश्वर, महाकाल, वज्रदन्त, भगन्दर, गोधामुख, दधिमुख आदि दूतों को, जो धधकती हुई आग की लपट के समान उद्दीप्त हो रहे थे, भेजा। उन सभी शिव-दूतों ने, जो नाना प्रकार के शास्त्रास्त्रों से सुसज्जित थे, शीघ्र ही जाकर कृत्तिकाओं के भवन को चारों ओर से घेर लिया। उन्हें देखकर सभी कृत्तिकाओं का मन भय से व्याकुल हो गया। तब वे ब्रह्मतेज से उद्दीप्त होते हुए कार्तिकेय के पास जाकर कहने लगीं। कृत्तिकाओं ने कहा– बेटा कार्तिकेय! असंख्यों कराल सेनाओं ने भवन को चारों ओर से घेर लिया है और हमें पता भी नहीं है कि ये किसकी हैं। तब कार्तिकेय बोले– माताओ! आप लोगों का भय दूर हो जाना चाहिये। मेरे रहते आपको भय कैसा? यह कर्मभोग दुर्निवार्य है, इसे कौन हटा सकता है। इसी बीच सेनापति नन्दिकेश्वर भी वहाँ कार्तिकेय के समक्ष उपस्थित हुए और कृत्तिकाओं से बोले। नन्दिकेश्वर ने कहा– भ्राता! संहारकर्ता सुरश्रेष्ठ शंकर और माता पार्वती द्वारा भेजे गये शुभ समाचार को मुझसे श्रवण करो। कैलास पर्वत पर गणेश के मांगलिक जन्मोत्सव के अवसर पर सभा में ब्रह्मा, विष्णु और शिव आदि सभी देवता उपस्थित हैं। वहाँ गिरिराजकिशोरी ने जगत का पालन करने वाले विष्णु को सम्बोधित करके उनसे तुम्हारे अन्वेषण के लिये कहा। तब विष्णु ने तुम्हारी प्राप्ति के निमित्त क्रमशः उन सभी देवों से पूछा। उनमें से प्रत्येक ने यथोचित उत्तर भी दिया। उन्हीं में धर्म-अधर्म के साक्षी धर्म आदि सभी देवताओं ने परमेश्वर को तुम्हारे यहाँ कृत्तिकाओं के भवन में रहने की सूचना दी। प्राचीनकाल में शिव-पार्वती की जो एकान्त क्रीड़ा हुई थी, उसमें देवताओं द्वारा देखे जाने पर शम्भु का शुक्र भूतल पर गिर पड़ा था। भूमि ने उस शुक्र को अग्नि में और अग्नि ने उसे सरकंडों के वन में फेंक दिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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