ब्रह्म वैवर्त पुराण
गणपतिखण्ड: अध्याय 13
तत्पश्चात उसे प्रिय लगने वाले नैवेद्यों– तिल के लड्डू, जौ और गेहूँ के चूर्ण, पूड़ी, अत्यन्त स्वादिष्ट तथा मनोहर पक्वान्न, शर्करा मिश्रित स्वादिष्ट स्वस्तिक के आकार का बना हुआ त्रिकोण पकवान विशेष, गुड़युक्त खील, चिउड़ा और अगहनी के चावल के आटे के बने हुए पदार्थ के नानाप्रकार के व्यंजनों के साथ पहाड़ लगा दिया। नारद! फिर उस पूजन में सुन्दरी पार्वती ने हर्ष में भरकर एक लाख घड़े दूध, एक लाख घड़े दही, तीन लाख घड़े मधु और पाँच लाख घड़े घी सादर अर्पित किया। नारद! फिर अनार और बेल के असंख्य फल, भाँति-भाँति के खजूर, कैथ, जामुन, आम, कटहल, केला और नारियल के असंख्य फल दिये। इनके सिवा और भी जो ऋतु के अनुसार विभिन्न देशों में उत्पन्न हुए स्वादिष्ट एवं मधुर पके हुए फल थे, उन्हें भी महामाया ने समर्पित किया। पुनः आचमन और पान करने के लिये अत्यन्त निर्मल कर्पूर आदि से सुवासित स्वच्छ गंगाजल दिया। नारद! इसके बाद उसी प्रकार सुवासित उत्तम रमणीय पान के बीड़े और बायन से परिपूर्ण सैकड़ों स्वर्णपात्र दिये। तदनन्तर मेनका, हिमालय, हिमालय के पुत्र और प्रिय अमात्यों ने गिरिजा के पुत्र का पूजन किया। वहाँ उपस्थित ब्रह्मा, विष्णु और शिव आदि सभी देवता– सर्वसिद्धिप्रदेशाय विघ्नेशाय नमो नमः।।’ -इसी मन्त्र से भक्तिपूर्वक वस्तुएँ समर्पित करके परमानन्द में मग्न थे। इस मन्त्र में बत्तीस अक्षर हैं। यह सम्पूर्ण कामनाओं का दाता, धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का फल देने वाला और सर्वसिद्धप्रद है। इसके पाँच लाख जप से ही जापक को मन्त्रसिद्धि प्राप्त हो जाती है। भारतवर्ष में जिसे मन्त्रसिद्धि हो जाती है, वह विष्णु-तुल्य हो जाता है। उसके नाम-स्मरण से सारे विघ्न भाग जाते हैं। निश्चय ही वह महान वक्ता, महासिद्ध, सम्पूर्ण सिद्धियों से सम्पन्न, श्रेष्ठ कवियों में भी श्रेष्ठ गुणवान, विद्वानों के गुरु का गुरु तथा जगत के लिये साक्षात वाक्पति हो जाता है। उस उत्सव के अवसर पर आनन्दमग्न हुए देवताओं ने इस मन्त्र से शिशु की पूजा करके अनेक प्रकार के बाजे बजवाये, उत्सव कराया, ब्राह्मणों को भोजन से तृप्त किया; फिर उन ब्राह्मणों को तथा विशेषतया वन्दियों को दान किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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