ब्रह्म वैवर्त पुराण
गणपतिखण्ड: अध्याय 8
पार्वती जी ने कहा– विप्रवर! आप क्या भोजन करना चाहते हैं? वह यदि त्रिलोकी में परम दुर्लभ होगा तो भी आज मैं आपको खिलाऊँगी। आप मेरा जन्म सफल कीजिये। ब्राह्मण ने कहा– सुव्रते! मैंने सुना है कि उत्तम व्रतपरायणा आपने पुण्यक-व्रत में सभी प्रकार का भोजन एकत्रित किया है, अतः उन्हीं अनेक प्रकार के मिष्टान्नों को खाने के लिये मैं आया हूँ। मैं आपका पुत्र हूँ। जो मिष्टान्न तीनों लोकों में दुर्लभ हैं, उन पदार्थों को मुझे देकर आप सबसे पहले मेरी पूजा करें। साध्वि! वेदवादियों का कथन है कि पिता पाँच प्रकार के होते हैं। माताएँ अनेक तरह की कही जाती हैं और पुत्र के पाँच भेद हैं। विद्यादाता (गुरु), अन्नदाता, भय से रक्षा करने वाला, जन्मदाता (पिता) और कन्यादाता (श्वसुर) ये मनुष्यों के वेदोक्त पिता कहे गये हैं। गुरुपत्नी, गर्भधात्री (जननी), स्तनदात्री (धाय), पिता की बहिन (बूआ), माता की बहिन (मौसी), माता की सपत्नी (सौतेली माता), अन्न प्रदान करने वाली (पाचिका) और पुत्रवधू– ये माताएँ कहलाती हैं। भृत्य, शिष्य, दत्तक, वीर्य से उत्पन्न (औरस) और शरणागत– ये पाँच प्रकार के पुत्र हैं। इनमें चार धर्मपुत्र कहलाते हैं और पाँचवाँ औरस पुत्र धन का भागी होता है।[1]माता! मैं आप पुत्रहीना का ही अनाथ पुत्र हूँ, वृद्धावस्था से ग्रस्त हूँ और इस समय भूख-प्यास से पीड़ित होकर आपकी शरण में आया हूँ। गिरिराजकिशोरी! अन्नों में श्रेष्ठ पूड़ी, उत्तम-उत्तम पके फल, आटे के बने हुए नानाप्रकार के पदार्थ, काल-देशानुसार उत्पन्न हुई वस्तुएं, पक्वान्न, चावल के आटे का बना हुआ तिकोना पदार्थ विशेष, दूध, गन्ना, गुड़ के बने हुए द्रव्य, घी, दही, अगहनी का भात, घृत में पका हुआ व्यंजन, गुड़ मिश्रित तिलों के लड्डू, मेरी जानकारी से बाहर सुधा-तुल्य अन्य वस्तुएँ, कर्पूर आदि से सुवासित सुन्दर श्रेष्ठ ताम्बूल, अत्यन्त निर्मल तथा स्वादिष्ट जल– इन सभी सुवासित पदार्थों को, जिन्हें खाकर मेरी सुन्दर तोंद हो जाये, मुझे प्रदान कीजिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ विद्यादातान्नदाता च भयत्राता च जन्मदः। कन्यादाता च वेदोक्ता नराणां पितरः स्मृताः।।
गुरुपत्नी गर्भधात्री स्तनदात्री पितुः स्वसा। स्वसा मातुः सपत्नी च पुत्रभार्यान्नदायिका।।
भृत्यः शिष्यश्च पोष्यश्च वीर्यजः शरणागतः। धर्मपुत्राश्च चत्वारो वीर्यजो धनभागिति।।-(गणपतिखण्ड 8। 47-49)
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