ब्रह्म वैवर्त पुराण
गणपतिखण्ड : अध्याय 6
तत्पश्चात सनक, सनन्दन, कपिल, सनातन, आसुरि, क्रतु, हंस, वोढु, पंचशिख, आरुणि, यति, सुमति, अनुयायियों सहित वसिष्ठ, पुलह, पुलस्त्य, अत्रि, भृगु, अंगिरा, अगस्त्य, प्रचेता, दुर्वासा, च्यवन, मरीचि, कश्यप, कण्व, जरत्कारु, गौतम, बृहस्पति, उतथ्य, संवर्त, सौभरि, जाबालि, जमदग्नि, जैगीषव्य, देवल, गोकामुख, वक्ररथ, पारिभद्र, पराशर, विश्वामित्र, वामदेव, ऋष्यश्रृंग, विभाण्डक, मार्कण्डेय, मृकण्डु, पुष्कर, लोमश, कौत्स, वत्स, दक्ष, बलाग्नि, अघमर्षण, कात्यायन, कणाद, पाणिनि, शाकटायन, शंकु, आपिशलि, शाकल्य, शंख– ये तथा और भी बहुत-से मुनि शिष्योंसहित वहाँ पधारे। मुने! धर्मपुत्र नर-नारायण भी आये। पार्वती के उस व्रत में दिक्पाल, देवता, यक्ष, गन्धर्व, किन्नर और गणोंसहित सभी पर्वत भी उपस्थित हुए। शैलराज हिमालय, जो अनन्त रत्नों के उद्भवस्थान हैं, कौतुकवश अपनी कन्या के व्रत में रत्नाभरणों से अलंकृत हो पत्नी, पुत्र, गण और अनुयायियों सहित पधारे। उनके साथ नाना प्रकार के द्रव्यों से संयुक्त बहुत बड़ी सामग्री थी। उसमें व्रतोपयोगी मणि-माणिक्य और रत्न थे। अनेक प्रकार की ऐसी वस्तुएँ थीं, जो संसार में दुर्लभ हैं। एक लाख गज-रत्न, तीन लाख अश्व-रत्न, दस लाख गो-रत्न, एक करोड़ स्वर्णमुद्राएँ, चार लाख मुक्ता, एक सहस्र कौस्तुभमणि और अत्यन्त स्वादिष्ट तथा मीठे पदार्थों के एक लाख भार थे। इसके अतिरिक्त पार्वती के व्रत में ब्राह्मण, मनु, सिद्ध, नाग और विद्याधरों के समुदाय तथा संन्यासी, भिक्षुक और बंदीगण भी आये। उस समय कैलास पर्वत के राजमार्गों पर चन्दन का छिड़काव किया गया था। पद्मरागमणि के बने हुए शिवमन्दिर में आम के पल्लवों की बंदनवारें बँधी थीं। कदली के खंभे उसकी शोभा बढ़ा रहे थे। वह दूब, धान्य, पत्ते, खील, फल और पुष्पों से सुसज्जित था। उपस्थित सारा जन-समुदाय आनन्दपूर्वक उसे निहार रहा था। सारे कैलासवासी परमानन्द में निमग्न थे। तदनन्तर शंकर जी ने समागत अतिथियों को ऊँचे-ऊँचे सिंहासनों पर बैठाकर उनका आदर-सत्कार किया। पार्वती के इस व्रत में इन्द्र दानाध्यक्ष, कुबेर कोषाध्यक्ष, स्वयं सूर्य आदेश देने वाले और वरुण परोसने के काम पर नियुक्त थे। उस समय दही, दूध, घृत, गुण, चीनी, तेल और मधु आदि की लाखों नदियाँ बहने लगी थीं। इसी प्रकार गेहूँ, चावल, जौ और चिउरे आदि के पहाड़ों-के-पहाड़ लग गये थे। महामुने! पार्वती के व्रत में कैलास पर्वत पर सोना, चाँदी, मूँगा और मणियों के पर्वत-सरीखे ढेर लगे हुए थे। लक्ष्मी ने भोजन तैयार किया था, जिसमें परम मनोहर खीर, पूड़ी, अगहनी का चावल और घृत से बने हुए अनेक विध व्यंजन थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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