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ज्ञान का यह मार्ग सब मार्गों से श्रेष्ठ है। इससे संतोष और संतित की प्राप्ति होती है। दान, तप, व्रत और उपवास आदि कर्म से जीवधारियों को स्वर्ग भोग आदि सुख की उपलब्धि होती है। पहले के सकाम कर्मों का यत्नपूर्वक मूलोच्छेद करके यह ज्ञान मोक्ष का बीज वपन करता है। संकल्प का अभाव ही मोक्ष का बीज है। मनुष्य जो भी सात्त्विक कर्म करे, उसे कामना या संकल्प से शून्य ही रखे। समस्त कर्मों को श्रीकृष्ण के चरणों में समर्पित करके ज्ञानी पुरुष परब्रह्म परमात्मा में लीन हो जाता है। संसारी पुरुषों के लिये इस गति को निर्वाण- मोक्ष कहा गया है। परंतु वैष्णव पुरुष भगवत्सेवा से विरह होने के भय से कातर हो इस निर्वाण- मुक्ति की इच्छा नहीं करते हैं। वे उत्तम देह धारण करके गोलोक अथवा वैकुण्ठधाम में उन्हीं परमात्मा की नित्य सेवा करते हैं।
इन्द्र! वैष्णवजन भगवत्सेवारूप मुक्ति की ही अभिलाषा रखते हैं। वे जीवन्मुक्त हैं और अपने समस्त कुल का उद्धार कर देते हैं। भगवान विष्णु का स्मरण, कीर्तन, अर्चन, पादसेवन, वन्दन, स्तवन, नित्य भक्तिभाव से उनके नैवेद्य का भक्षण, चरणोदक का पान तथा उनके मन्त्र का जप– यही जीव के उद्धार का बीज है, जो सबके लिये अभीष्ट हो सकता है। यह मृत्युंजय-ज्ञान है, जिसे भगवान मृत्युंजय ने मुझे दिया था। मैं उनका शिष्य हूँ। इसलिये उन्हीं के कृपा-प्रसाद से सर्वत्र निर्भय विचरता हूँ। जो तीनों लोकों में परम दुर्लभ हरिभक्ति प्रदान करता है, वही जन्मदाता पिता है, वही ज्ञानदाता गुरु है, वही बन्धु है और वही सत्पुरुषों में श्रेष्ठ है।[1] जो श्रीकृष्ण-सेवा के सिवा दूसरा कोई मार्ग दिखाता है, वह उस शिष्य का विनाश ही करता है। निश्चय ही उस गुरु को उसके वध के पाप का भागी होना पड़ता है। भगवान श्रीकृष्ण का नाम ही सदा समस्त लोकों के लिये मंगलकारक है। जो कृष्ण-नाम लेता है, उसके मंगल की सदा वृद्धि होती है। उसकी आयु का अपव्यय नहीं होता।
श्रीकृष्ण भक्तों से काल, मृत्यु, रोग, संताप और शोक उसी तरह दूर भागते हैं, जैसे गरुड़ से सर्प। श्रीकृष्ण-मन्त्र का उपासक ब्राह्मण हो या चाण्डाल, वह ब्रह्मलोक को लाँघकर उत्तम गोलोक में चला जाता है। ब्रह्मा जी मधुपर्क आदि के द्वारा उसकी पूजा करते हैं तथा देवताओं और सिद्धों के मुख से अपनी स्तुति सुनता हुआ वह परमानन्द का अनुभव करता है। भगवान शिव ने श्रीकृष्ण के चरणारविन्दों की सेवा को ही ज्ञान, तप, वेद तथा योग का सार बताया है। वही परम कल्याणस्वरूप है। ब्रह्मा से लेकर तृणपर्यन्त सारा जगत स्वप्न के समान मिथ्या ही है। केवल परब्रह्म परमात्मा राधावल्लभ श्रीकृष्ण ही परम सत्य हैं। वे प्रकृति से भी परे हैं। अतः तुम उन्हीं की आराधना करो। भगवान श्रीकृष्ण अत्यन्त सुखदायक, सारतत्त्वस्वरूप, भक्तिदाता, मोक्षदाता, सिद्धिदाता, योगप्रदाता और सम्पूर्ण सम्पदाओं के दाता हैं।
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