ब्रह्म वैवर्त पुराण
प्रकृतिखण्ड : अध्याय 29-31
साध्वि! जो अत्यन्त दारुण एवं निर्दयी व्यक्ति तलवार से जीवों को काटता तथा धन के लोभ से नरघाती बनकर मानव की हत्या करता है, वह असिपत्र नामक नरक में स्थान पाता है। मेरे दूत तलवार से निरन्तर उसके अंग काटते हैं। जब वह भोजन के अभाव में चिल्लाता है, तब दूत उसे मारते हैं। फिर सौ-सौ जन्मों तक भारत में चाण्डाल, शूकर और कूकर होता है। इसके बाद सात-सात जन्मों तक श्रृगाल और व्याघ्र होता है, तीन जन्मों तक भेड़िया, सात जन्मों तक गेंडा और तीन जन्मों तक भैंसा होता है। पतिव्रते! ग्रामों और नगरों में आग लगाने वाला पापी मानव क्षुरधार नामक नरक में निवास करता है। तीन युगों तक उसमें रहता है और यमदूत उसके अंग को काटते रहते हैं। फिर उसे प्रेत की योनि मिल जाती है और मुँह से आग उगलता हुआ वह जगत में भ्रमण करता है। फिर सात-सात जन्मों तक अमेध्यभोजी, खद्योत, महान शूलरोगी एवं गलितकुष्ठी मानव होता है। जो दूसरे के कान में मुँह लगाकर परायी निन्दा करता है, दूसरे के दोष जानने में जिसकी विशेष स्पृहा रहती है तथा जो देवता एवं ब्राह्मण की निन्दा किया करता है, वह तीन युगों तक शूचीमुख नामक नरक में स्थान पाता है। शूची में उसके सभी अंग छिद जाते हैं। फिर बिच्छू, सर्प, वज्रकीट तथा आग फैलाने वाले कीड़ों की योनियों में सात-सात जन्मों तक भटकता है। जो गृहस्थों के घर में सेंध लगाकर घुस जाता है और भीतर पड़ी वस्तुएँ चुरा लेता है तथा गाय, बकरे और भेड़ों की भी चोरी करता है, वह गोधामुख नामक नरक में जाता है। मेरे दूतों की मार खाते हुए तीन युगों तक उसे वहाँ रहना पड़ता है। साधारण वस्तु चुराने वाला व्यक्ति नक्रमुख संज्ञक नरक में जाता है। मेरे दूतों की मार सहते हुए वह वहाँ रहता है। फिर उसकी शुद्धि हो जाती है। जो हाथियों, घोड़ों एवं गौओं को मारता है तथा वृक्षों को काटता है, वह महान पातकी व्यक्ति गजदंश नामक नरक में दीर्घकाल तक रहता है। मेरे दूत हाथी के दाँत लेकर उन्हीं से उसको निरन्तर पीटते हैं। फिर तीन-तीन जन्मों तक वह हाथी, घोड़े, गौ एवं म्लेच्छ जाति की योनि में उत्पन्न होता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अध्याय | विषय | पृष्ठ संख्या |