ब्रह्म वैवर्त पुराण
प्रकृतिखण्ड : अध्याय 27-28
सुन्दरी! सम्पूर्ण यज्ञों से भगवान विष्णु का यज्ञ श्रेष्ठ कहा गया है। ब्रह्मा ने पूर्वकाल में बड़े समारोह के साथ इस यज्ञ का अनुष्ठान किया था। पतिव्रते! उसी यज्ञ में दक्ष प्रजापति और शंकर में कलह मच गया था। ब्राह्मणों ने क्रोध में आकर नन्दी को शाप दिया था और नन्दी ने ब्राह्मणों को। यही कारण है कि भगवान शंकर ने दक्ष के यज्ञ को नष्ट कर डाला। पूर्वकाल में दक्ष, धर्म, कश्यप, शेषनाग, कर्दममुनि, स्वायम्भुवमनु, उनके पुत्र प्रियव्रत, शिव, सनत्कुमार, कपिल तथा ध्रुव ने विष्णु यज्ञ किया था। उसके अनुष्ठान से हजारों राजसूय यज्ञों का फल निश्चित रूप से मिल जाता है। वह पुरुष अवश्य ही अनेक कल्पों तक जीवन धारण करने वाला तथा जीवन्मुक्त होता है। भामिनि! जिस प्रकार देवताओं में विष्णु, वैष्णव पुरुषों में शिव, शास्त्रों में वेद, वर्णों में ब्राह्मण, तीर्थों में गंगा, पुण्यात्मा पुरुषों में वैष्णव, व्रतों में एकादशी, पुष्पों में तुलसी, नक्षत्रों में चन्द्रमा, पक्षियों में गरुड़, स्त्रियों में भगवती मूलप्रकृति राधा, आधारों में वसुन्धरा, चंचल स्वभाव वाली इन्द्रियों में मन, प्रजापतियों में ब्रह्मा, प्रजेश्वरों में प्रजापति, वनों में वृन्दावन, वर्षों में भारतवर्ष, श्रीमानों में लक्ष्मी, विद्वानों में सरस्वती, पतिव्रताओं में भगवती दुर्गा और सौभाग्यवती श्रीकृष्ण पत्नियों में श्रीराधा सर्वोपरि मानी जाती हैं; उसी प्रकार सम्पूर्ण यज्ञों में विष्णुयज्ञ श्रेष्ठ माना जाता है। सम्पूर्ण तीर्थों का स्नान, अखिल यज्ञों की दीक्षा तथा व्रतों एवं तपस्याओं और चारों वेदों के पाठ का तथा पृथ्वी की प्रदक्षिणा का फल अन्त में यही है कि भगवान श्रीकृष्ण की मुक्तिदायिनी सेवा सुलभ हो। पुराणों, वेदों और इतिहास में सर्वत्र श्रीकृष्ण के चरण-कमलों की अर्चना को ही सारभूत माना गया है। भगवान के स्वरूप का वर्णन, उनका ध्यान, उनके नाम और गुणों का कीर्तन, स्तोत्रों का पाठ, नमस्कार, जप, उनका चरणोदक और नैवेद्य ग्रहण करना- यह नित्य का परम कर्तव्य है। साध्वी! इसे सभी चाहते हैं और सर्वसम्मति से यही सिद्ध भी है। वत्से! अब तुम प्रकृति से पर तथा प्राकृत गुणों से रहित परब्रह्म श्रीकृष्ण निरन्तर उपासना करो। मैं तुम्हारे पतिदेव को लौटा देता हूँ। इन्हें लो और सुखपूर्वक अपने घर को जाओ। मनुष्यों का यह मंगलमय कर्म-विपाक मैंने तुमको सुना दिया। यह प्रसंग सर्वेप्सित, सर्वसम्मत, तथा तत्त्वज्ञान प्रदान करने वाला है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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